— ऐ मौत तेरा क्या खौफ्फ़ —
तेरा आने का अब कोई गम नही
न जाने कितनो को जाते देख लिया
न दिल में कोई डर बाकी है
न ही तेरे आने का कुछ गम मुझे यहाँ
रोजाना कोई न कोई निकल जाता है
मेरी आँखों के सामने से कफन लपेटे हुए
मैं देखता जरुर हूँ, पर डरता नही
क्यूंकि तू भी तो ले जायेगी मुझे कफन लपेटे हुए
हर चीज ने रुखसत होना है यहाँ से
नही बचेगा किसी का कोई निशाँ यहाँ
याद तो उस को करते हैं दुनिया वाले
जिस ने धन दौलत शोहरत पाई हो यहाँ
क्या है जिन्दगी का फल्सफ्फा
न जाने क्यूं पैदा करता है तू सब को
जब तक जीवन जीने का अंदाज समझ आये
उस पल में ही आँखे मूँद देता है तू यहाँ
नीरस भरा जीवन अब नजर आने लगा
ऐ मौत तेरा अब कोई डर हमें नही सताने लगा
एक माचिस की तील्ली का ही तो खेल है
जिस पर जल कर राख हो जाना है यहाँ
अजीत कुमार तलवार
मेरठ