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26 May 2021 · 1 min read

ऐसे बरसो तरस गए नयनो से पानी बरसे।

ऐसा बरसो तरस गए नयनों से पानी बरसे।

धूप नहाई धरती का तन लावा जैसे तपता,
रुछ पवन रेतीली आंधी बन नयनों में चुभता,
धूसर सी लगती है भू की नीली मणि सी सी काया,
हरियाली का धन धरती का तेजी से है चुकता,
भर जाए आँचल फिर से यूँ रंग वो धानी बरसे।
ऐसे बरसो तरस गए नयनों से पानी बरसे।

पत्तों के मुखड़ों पर है सिकुड़न ने जाल पसारा,
सिकुड़े ताल तलैया कुंआ लड़ते लड़ते हारा,
पेड़ खींचते हैं धरती के अंतर से जो पाएं,
हांफ रहा है गरमी से लगता जग जैसे सारा,
ताल तलैया कुंआ पोखर सरस जवानी बरसे।
ऐसे बरसो तरस गए नयनों से पानी तरसे।

नीले नभ को श्यामल कर अपना अधिकार दिखाओ,
रुत की पाती पास तुम्हारे न हिचको सकुचाओ,
खुला पड़ा है नभ सारा कोई भी रोक नहीं है,
जन वन बाहें खोल खड़े हैं स्वागत को तुम आओ,
गदगद हो सब भीगें ऐसी प्रेम कहानी बरसे।
ऐसे बरसो तरस गए नयनो से पानी बरसे।

10 Likes · 7 Comments · 262 Views
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