एक साली दो (हास्य)
भगवन मुझको एक साली दो
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मुझे शील कहो जलील कहो
या फिर मन का मलीन कहो,
भगवन तू दो चाहे जाली दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
मुझे जात कहो बद्जात कहो
या तथ्य हीन कोई बात कहो
फिर भी वर दो; चाहे काली दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
थोड़ा सुख हमको पाने दो
हमें गीत खुशी का गाने दो,
तुम लंगड़ी दो या कानी दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
मैं तेरा सच्चा सेवक हूँ
मैं भक्त बड़ा उत्प्रेरक हूँ,
मुझे वर दो चाहे जाली दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
पत्नी सुख में एक बाधा है
किन्तु साली मधुशाला है,
मग जाम भरा या खाली दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
नलकूप बिना जाली जैसा
यह यौवन साली बीन वैसा
तुम बिना अन्न के थाली दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
साली है पायल की छम-छम
वह पाक पवित्र आबे जमजम,
तुम गोरी दो या काली दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
साली गोकुल की पनघट है
साली से सुख का जमघट है,
तुम भोली या नखराली दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
मधुमास बिना साली कैसा
बरसात के बिन सावन जैसा,
बरसात बिना हरियाली दो
भगवन मुझको एक साली दो।
साली रिश्तों में होली है
बंदूक की बुल्लेट गोली है,
मुझे असली दो या जाली दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
वह संसद की सत्ता जैसी
वह पान में कत्था के जैसी,
तुम बिन कत्थे की प्याली दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
इस जीवन में कोई रस ही नहीं
बिन साली यश अपयश ही नहीं,
मुझे मान नहीं ना ताली दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
मै द्वार तुम्हारे खड़ा हुआ
मैं मांग पे अपने अड़ा हुआ,
हमें फल से लदी नहीं डाली दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
मैं पत्नी संग अकेला हूँ
तानों से बहुत थकेला हूँ,
अब ताने दो या गाली दो
किन्तु मुझको एक साली दो।
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©®पं.संजीव शुक्ल “सचिन”