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6 Dec 2016 · 1 min read

एक सामूहिक हत्या थी

भोपाल गैस त्रासदी पर कुछ बह निकले व्यथा के शब्द

इक सामूहिक हत्या थी

किसको था मालूम कि उस दिन रात वो ऐसी आएगी
एक रात की निद्रा वो , चिर-निद्रा में ढल जाएगी
पूंजीवाद का वो दानव यूँ , सबको निगल जाएगा
रातों-रात यूँ एक शहर की दुनियाँ बदल जाएगी

दुनियाँ भर के अखबारों ने लिखा कि बस दुर्घटना थी
मानवता के इतिहास में , बहुत बुरा एक सपना थी
लेकिन कब तक हरेक बात पर भाग्य पर रोना होगा
कोई माने या ना माने पर ये इक सामूहिक हत्या थी

घबराता हूँ सोच के ये , उस रात का मंज़र क्या होगा
जाने कैसा मौत का तांडव , घर घर के अन्दर होगा
हाहाकार की वो आवाज़े आज तलक भी आती हैं
उस रात आँसुओं का वो जाने एक समंदर क्या होगा

छोटे छोटे मासूमों का दोष था क्या बतलाओ तो
विधवा और अनाथों का , अपराध ज़रा समझाओ तो
उसपर उनके ज़ख्मों पर सब नमक छिड़कते आए हैं
सत्ता के ठेकेदारों तुम आकर मुँह , दिखलाओ तो

अन्यायों की पराकाष्ठा , इससे ज्यादा क्या होगी
हत्यारों और सरकारों की , और इन्तिहाँ क्या होगी
साल हुए बत्तीस अभी तक न्याय नहीं मिल पाया है
अनंत दर्द और ज़ख्मो की यहाँ और दास्ताँ क्या होगी

सुन्दर सिंह
03.12.2016

Language: Hindi
492 Views
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