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19 Feb 2021 · 1 min read

‘ एक सच ये भी है ‘

ये सुबह बहुत डराती है
मगर ये काली अंधेरी रात
दिल को भाती है ,

बस ये रात ठहर जाये
कैसे भी करके ये
सूरज को निगल जाये ,

नही तो अगली सुबह
वो फिर से आयेगा
और बेहद थका जायेगा ,

थकते थकते ज्यादा ही
थक गई हूँ
इस थकान से पक गई हूँ ,

मन से काम करो तो
एक उत्साह रहता है
नही तो उत्साह ख़ाक रहता है ,

कोई नही समझता
किसी के मन के दर्द को
अब कहाँ ढ़ूंढ़ूँ अपने हमदर्द को ,

सारा खेल मन का ही तो है
शरीर का थका तो चल जाता है
मन का थका तो मर जाता है ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 18/02/2021 )

Language: Hindi
415 Views
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