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21 Jul 2020 · 3 min read

एक लड़की भीगी भागी सी

एक लड़की भीगी भागी सी
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घनघोर वारिश के बीच कच्चे जंगली रास्ते पर भीगता काँपता हुआ सचिन घर की ओर बढ़ रहा था।उसे माँ की चिंता हो रही थी,जो इस विकराल मौसम में भी दरवाजे पर टकटकी लगाये उसका इंतजार कर रही होगी।पिता की मृत्यु के बाद मां बेटा ही एक दूसरे का सहारा थे।
किसी तरह भागदौड़ कर जंगल के पार बाजार में काम तलाश कर पाया था।आठ किमी. दूर ऊपर से जंगली रास्ता।परंतु पेट की आग इस खतरे के लिए विवश करती रहती रहती है।आज के हालात में वह मजबूर था।
इसी उधेड़बुन में तेजी से बढ़ रहे कदमों के बीच एक डरी सहमी नवयौवना को इस मौसम और खतरनाक जंगल में देखकर उसके कदम ठिठक से गये।सरल संकोची स्वभाव का सचिन हिचकिया,परंतु इस हालत में वह उसे छोड़ने की गलती नहीं कर सकता था।
हिम्मत संजोकर वह उस बदहवास सी सी लड़की के पास पहुंचा ,उससे हालत के बारे में जानना चाहा, परंतु कोई उत्तर न मिलने से वह परेशान सा हो उठा।
थकहार कर उसनें उसके कंधे पर हाथ रखकर झकझोरा।परंतु प्रत्युत्तर में निराशा ही हाथ लगी।
उधर अंधेरा बढ़ता जा रहा था, जिससे उसकी चिंता और बढ़ रही थी।
फिर एकाएक उसनें लड़की को कंधे पर उठाया और सावधानी से घर की ओर बढ़ चला।
भगवान का शुक्र ही था कि थोड़ा देर से ही सही वह सही सलामत घर पहुंच गया।
घर पहुंचते ही माँ ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी।
सचिन माँ से बोला-तू परेशान मत हो,पहले तू इस लड़की के कपड़े बदल, तब तक मैं जल्दी से कपड़ें बदल कर काढ़ा बना लेता हूँ।शायद तब तक ये भी कुछ बोलने बताने की स्थिति में आ जाय।
उसकी माँ ने किसी तरह उसको अपने कपड़ें पहनाये फिर खुद ही मिट्टी के पात्र में आग जलाकर इस उम्मीद में ले आई कि शायद आग की गर्मी से उसकी चेतना आ जाये।
तब तक संजय तीन गिलास में काढ़ा बना कर ले आया।
संजय की मां उस लड़की को बड़े लाड़ से काढ़ा पिलाने लगी।तब तक संजय ने मां को पूरी बात बता डाला और चिंतित भाव सेे पूछा-अब क्या होगा मांँ?
चिंतित तो माँ भी थी,परंतु बेटे का हौसला बढ़ाते हुए दुलराया।
देख बेटा हम गरीब जरूर हैं।परंतु हमारा जमीर जिंदा है।
सुबह प्रधान जी को बताते हैं,उनसे मदद माँगेंगे,फिर हम भी इसके परिवार का पता लगाते रहेंगे।
दुनिया समाज के हिचकोलों के बीच झूलता संजय बोला-फिर भी माँ अगर कुछ पता न चला तब?
देख बेटा अगर तुझे एतराज नहीं होगा तो मैं सबके सामने इसे अपनी अपनी बेटी बना कर अपने आँचल की छाँव दूंगी।
तेरे फैसले पर मैनें कभी एतराज किया क्या?काश ऐसा हो सकता, तो बीस सालों से मेरी कलाई राखी के धागों से खिल जाती।
अच्छा बेटा अब सो जा।जैसी प्रभु की इच्छा।सुबह देखा जायेगा।मैं इसी के पास हूँ,पता नहीं कब होश में आ जाय बेचारी।
ठीक है माँ,इसे होश आये तो मुझे जगा लेना।अंजान जगह को देखकर परेशान हो सकती है।
इतना कहकर संजय सोने चला गया,परंतु अंजान जवान लड़की को लेकर उठ रहे सवालों ने उसकी माँ की आँखों की नींद उड़ा दी,वो कल के बारे में अधिक परेशान थी,ऊपर से लड़की का अब तक होश में न आना उसे और बेचैन कर रहा था।
?सुधीर श्रीवास्तव

Language: Hindi
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