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3 May 2020 · 1 min read

एक राहगीर लड़की का दर्द

हां मैं चलती हूं किनारे किनारे, हां मैं चलती हूं किनारे किनारे
मनचले भेड़ियों की नजरें बचाकर, सज्जनता के सहारे
हां मैं चलती हूं किनारे किनारे
इन भेड़ियों की नजरों से, बचना कठिन है
कोई जगह अछूती नहीं, जहां न इनका हक है
कहीं यह मिलेंगे हीरो लिबास में, तो कहीं यह मिलेंगे शरीफ जादों के भेष में
गलियां गलियां रे हों, रस्ते चौबारे पर्यटन स्थल या पाक के नजारे हों,
बगिया पुलिया चौराहों के किनारे, हों बसें ट्रेन या की हो प्लेन, मिलेंगे हर जगह विलेन
हाट हो बाजार हो, चाहे तेल की कतार हो
धार्मिक कोई जलसा हो, फिर बसंत सी बहार है
मेला हो ठेला हो ,कोई मौसम अलबेला हो
मंगल कलश या मौत का झमेला हो
लेकिन यह भेड़िए चूकते नहीं है
सुनती चलती हूं इनकी अश्लील फब्तियां
और यह सोचती हूं, शायद इन बेड़ियों की मां बहने नहीं है
तभी है इनमें उन्माद ,बोलने का अश्लील संवाद
यही सोच कर छुपा दामन दुपट्टे में
चली चलती हूं किनारे किनारे हां मैं चलती हूं किनारे किनारे

Language: Hindi
11 Likes · 4 Comments · 476 Views
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