एक मुद्दत की प्यास बुझ जाए
वज़्न — 2122 – 1212– 22
अर्कान– फाइलातुन मुफाइलुन फेलुन
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ग़ज़ल
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इक न इक दिन मुझे बुलाएगी
याद मेरी उसे रुलाएगी
ठोकरों में मुझे अभी रक्खा
एक दिन तो यकीन लाएगी
चैन पाये न जब अकेले वो
पास आकर गले लगाएगी
कब से सूखे गुलाब दिल के है
कब चमन में बहार आएगी — गिरह
सारे शिकवे गिले भुला कर वो
मेरी बाहों में कसमसाएगी
एक मुद्दत की प्यास बुझ जाए
जाम आँखों से जब पिलाएगी
रूठ जाऊँ अगर कभी उससे
प्यार से वो मुझे मनाएगी
रूप निखरेगा और भी “प्रीतम”
प्यार के रंग मे जब नहाएगी