Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Jan 2017 · 2 min read

एक मई का दिन

कुछ भी तो ठीक नहीं
इस दौर में!
वक्त सहमा हुआ
एक जगह ठहर गया है!!
जैसे घडी की सुइयों को
किसी अनजान भय ने
अपने बाहुपाश में
बुरी तरह जकड रखा हो।

व्यवस्था ने कभी भी
व्यापक फलक नहीं दिया श्रमिकों को
जान निकल देने वाली
मेहनत के बावजूद
एक चौथाई टुकड़े से ही
संतोष करना पड़ा
एक रोटी भूख को
सालों-साल।…
पीढ़ी-दर-पीढ़ी!!

एक प्रश्र कौंधता है—
क्या कीमतों को बनाये रखना
और मुश्किलों को बढ़ाये रखना
इसी का नाम व्यवस्था है?

“रूसी क्रांति” और “माओ का शासन”
अब पढ़ाये जाने वाले
इतिहास का हिस्सा भर हैं।
साल बीतने से पूर्व ही
वह ऐतिहासिक लाल पन्ने
काग़ज़ की नाव या हवाई जहाज
बनाकर कक्षाओं में उड़ने के काम आते हैं
हमारे नौनिहालों के—
जिन्हें पढाई बोझ लगती है!

एक मजदूर से जब मैंने पूछा—
क्या तुम्हें अपनी जवानी का
कोई किस्सा याद है?
वह चौंक गया!
मानो कोई पहेली पूछ ली हो?
बाबू ये जवानी क्या होती है!
मैंने तो बचपन के बाद
इस फैक्ट्री में सीधा अपना बुढ़ापा ही देखा है!!
मैं ही क्या
दुनिया का कोई भी मजदूर
नहीं बता पायेगा
अपनी जवानी का कोई यादगार किस्सा!!

अब मन में यह प्रश्र कौंधता है—
क्या मजदूर का जन्म
शोषण और तनाव झेलने
मशीन की तरह निरंतर काम करने
कभी न खत्म होने वाली जिम्मेदारियों को उठाने
और सिर्फ दु:ख-तकलीफ के लिए ही हुआ है?
क्या यह सारे शब्द मजदूर के पर्यायवाची हैं?

मुझे भी यह अहसास होने लगा है
कोई बदलाव नहीं आएगा
कोई इंकलाब नहीं आएगा
पूंजीवादी कभी हम मेहनत कशों का
वक्त नहीं बदलने देंगे!
हमें चैन की करवट नहीं लेने देंगे।

हमारे हिस्से के चाँद-सूरज को
एक साजिश के तहत
निगल लिया गया है!

अफ़सोस—पूरे साल में
एक मई का दिन आता है
जिस दिन हम मेहनतकश
चैन की नींद सोये रहते हैं!

•••

Language: Hindi
250 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
View all
You may also like:
राम के नाम को यूं ही सुरमन करें
राम के नाम को यूं ही सुरमन करें
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
साँसों के संघर्ष से, देह गई जब हार ।
साँसों के संघर्ष से, देह गई जब हार ।
sushil sarna
जो बीत गया उसे जाने दो
जो बीत गया उसे जाने दो
अनूप अम्बर
'व्यथित मानवता'
'व्यथित मानवता'
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
वो अनुराग अनमोल एहसास
वो अनुराग अनमोल एहसास
Seema gupta,Alwar
*चाँद कुछ कहना है आज * ( 17 of 25 )
*चाँद कुछ कहना है आज * ( 17 of 25 )
Kshma Urmila
बड्ड  मन करैत अछि  सब सँ संवाद करू ,
बड्ड मन करैत अछि सब सँ संवाद करू ,
DrLakshman Jha Parimal
भारत चाँद पर छाया हैं…
भारत चाँद पर छाया हैं…
शांतिलाल सोनी
मत देख कि कितनी बार  हम  तोड़े  जाते  हैं
मत देख कि कितनी बार हम तोड़े जाते हैं
Anil Mishra Prahari
मजबूरी तो नहीं
मजबूरी तो नहीं
Mahesh Tiwari 'Ayan'
समय और स्त्री
समय और स्त्री
Madhavi Srivastava
*प्यार से और कुछ भी जरूरी नहीं (मुक्तक)*
*प्यार से और कुछ भी जरूरी नहीं (मुक्तक)*
Ravi Prakash
■ आज तक की गणना के अनुसार।
■ आज तक की गणना के अनुसार।
*Author प्रणय प्रभात*
यहाँ प्रयाग न गंगासागर,
यहाँ प्रयाग न गंगासागर,
Anil chobisa
"खूबसूरती"
Dr. Kishan tandon kranti
शे'र
शे'र
Anis Shah
23-निकला जो काम फेंक दिया ख़ार की तरह
23-निकला जो काम फेंक दिया ख़ार की तरह
Ajay Kumar Vimal
इतिहास
इतिहास
Dr.Priya Soni Khare
गाली / मुसाफिर BAITHA
गाली / मुसाफिर BAITHA
Dr MusafiR BaithA
बाल गीत
बाल गीत "लंबू चाचा आये हैं"
अटल मुरादाबादी, ओज व व्यंग कवि
* जब लक्ष्य पर *
* जब लक्ष्य पर *
surenderpal vaidya
फूलों से हँसना सीखें🌹
फूलों से हँसना सीखें🌹
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
विनाश की जड़ 'क्रोध' ।
विनाश की जड़ 'क्रोध' ।
Buddha Prakash
सांच कह्यां सुख होयस्यी,सांच समद को सीप।
सांच कह्यां सुख होयस्यी,सांच समद को सीप।
विमला महरिया मौज
हम भी तो देखे
हम भी तो देखे
हिमांशु Kulshrestha
बरखा रानी
बरखा रानी
लक्ष्मी सिंह
पड़ोसन की ‘मी टू’ (व्यंग्य कहानी)
पड़ोसन की ‘मी टू’ (व्यंग्य कहानी)
Dr. Pradeep Kumar Sharma
वसंत पंचमी
वसंत पंचमी
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
महाप्रभु वल्लभाचार्य जयंती
महाप्रभु वल्लभाचार्य जयंती
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
ताक पर रखकर अंतर की व्यथाएँ,
ताक पर रखकर अंतर की व्यथाएँ,
सत्यम प्रकाश 'ऋतुपर्ण'
Loading...