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27 Aug 2016 · 1 min read

एक बार फिर संयमित हो रही हूं

सांकेतिक व्यंग
एक बार फिर ……

आज फिर संयमित हो रही हूं
संगठित होकर सारगरभित हो रही हूं

स्वयं की लेखनी को स्फुटित कर
भीगे लफ्जो को अल्फाज दे रही हूं

व्यथितऔर आहत मन को टोह रही हूं
वक्त की कूर्रता को मात दे रही हू

हॉ आज फिर एक बार संयमित हो रही हूं
कुछ नया कु छ आसमानी करने को उनमुख हो रही हूं

शिछित की अशिछा से
ग्यानी की अग्यानता से
धनी की निर्धनता से
बस जरा कुठित हो रही हूं
हॉ सच ..
आज एक बार फिर संयमित हो रही हूं

किसी गरीब की बेबसी
किसी गुरूर की लाचारी
और किसी डिग्री की बेरोजगारी
को देखकर द्रवित हो रही हूं …
बेपनाह मेहनत को
तिल तिल मरते देख
आहत हो रही हूं
हॉ सचमुच एक बार फिर
संयमित हो रही हूं
संगठित होकर सार गर्भित हो रही हूं ……

Language: Hindi
403 Views
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