Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Sep 2019 · 2 min read

एक पंथ दो काज

एक पंथ दो काज
अक्सर इतवार की शाम शर्मा जी अपने बीबी-बच्चों के साथ लाँग ड्राइव पर शहर से दूर गाँव की ओर निकल पड़ते थे। इस बार भी अभी वे शहर के आउटर में ही पहुँचे थे, कि उन्होंने सड़क किनारे गाड़ी रोक दी। उनकी दस वर्षीया बेटी ने पूछा, “क्या हुआ पापा ? आपने गाड़ी क्यों रोक दी ?”
शर्माजी ने कहा, “बस दो मिनट रूको। मैं अभी आया।”
शर्माजी गाड़ी से उतरकर एक ठेले पर गए, जहाँ एक बुजुर्ग दंपत्ति समोसे बना रहे थे, वहाँ से खरीदने लगे।
गाड़ी में बैठे उनके सात वर्षीय बेटे ने कहा, “मम्मा, देखो पापा कैसे उन बूढ़े लोगों से समोसे खरीद रहे हैं। छी… छी… मैं तो नहीं खाऊँगा। आप लोगों को खाना हो, तो खा लेना।”
मम्मी ने कहा, “ठीक कह रहे हो बेटा। मत खाना तुम।”
शर्माजी थैले में समोसे लटकाए आए और फिर से उनकी गाड़ी चल पड़ी आगे। कुछ दूर आगे जाकर उन्होंने गाड़ी फिर से रोक दी। बोले, “आप लोग पाँच मिनट रुको। मैं अभी आया।”
वे समोसे की थैली लिए निकले और सड़क किनारे स्थित अनाथालय के मैदान में खेल रहे रहे बच्चों को समोसे बाँटने लगे। थोड़ी देर बाद वे आकर फिर से गाड़ी ड्राइव करने लगे।
बेटी से रहा नहीं गया। पूछ बैठी, “पापा आपने समोसे क्यों खरीदे थे ?”
पापा ने समझाया, “बेटा, हम सक्षम लोग हैं। हमारे लिए सौ-दो सौ रुपए कुछ विशेष मायने नहीं रखते। जिनसे मैंने समोसे खरीदे, उनके लिए ये बहुत मायने रखते हैं। उनकी उम्र देखी थी आप लोगों ने ? अस्सी साल से क्या कम रही होगी ? इस उम्र में बहुत जरूरतमंद व्यक्ति ही काम करते हैं। वे स्वाभिमानी हैं, जो खुद काम कर गुजारा करते हैं। उनसे समोसे खरीद कर और इन अनाथ बच्चों को खिलाकर मैंने एक साथ दो-दो नेककार्य कर लिए।”
“वावो, यू आर ग्रेट पापा। लव यू।” बेटी ने कहा।
-डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़

688 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"किसे कहूँ मालिक?"
Dr. Kishan tandon kranti
"मौत से क्या डरना "
Yogendra Chaturwedi
ज़रूरत
ज़रूरत
सतीश तिवारी 'सरस'
आलोचक सबसे बड़े शुभचिंतक
आलोचक सबसे बड़े शुभचिंतक
Paras Nath Jha
शिखर के शीर्ष पर
शिखर के शीर्ष पर
प्रकाश जुयाल 'मुकेश'
गजल
गजल
Anil Mishra Prahari
23/155.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/155.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
है एक डोर
है एक डोर
Ranjana Verma
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूं ग़ज़ल की ये क़िताब,
तेरे बिछड़ने पर लिख रहा हूं ग़ज़ल की ये क़िताब,
Sahil Ahmad
बाल एवं हास्य कविता: मुर्गा टीवी लाया है।
बाल एवं हास्य कविता: मुर्गा टीवी लाया है।
Rajesh Kumar Arjun
अनुभव
अनुभव
Sanjay ' शून्य'
अमृत वचन
अमृत वचन
Dinesh Kumar Gangwar
हिन्दु नववर्ष
हिन्दु नववर्ष
भरत कुमार सोलंकी
क्यूं हो शामिल ,प्यासों मैं हम भी //
क्यूं हो शामिल ,प्यासों मैं हम भी //
गुप्तरत्न
जिन्दगी मे एक बेहतरीन व्यक्ति होने के लिए आप मे धैर्य की आवश
जिन्दगी मे एक बेहतरीन व्यक्ति होने के लिए आप मे धैर्य की आवश
पूर्वार्थ
💐प्रेम कौतुक-530💐
💐प्रेम कौतुक-530💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
ऐसा नही था कि हम प्यारे नही थे
ऐसा नही था कि हम प्यारे नही थे
Dr Manju Saini
आतंकवाद सारी हदें पार कर गया है
आतंकवाद सारी हदें पार कर गया है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
पूस की रात
पूस की रात
Atul "Krishn"
जाने कैसे आँख की,
जाने कैसे आँख की,
sushil sarna
शिखर ब्रह्म पर सबका हक है
शिखर ब्रह्म पर सबका हक है
मनोज कर्ण
"The Divine Encounter"
Manisha Manjari
किसी से भी
किसी से भी
Dr fauzia Naseem shad
दोस्ती गहरी रही
दोस्ती गहरी रही
Rashmi Sanjay
जो मासूम हैं मासूमियत से छल रहें हैं ।
जो मासूम हैं मासूमियत से छल रहें हैं ।
सत्येन्द्र पटेल ‘प्रखर’
तुमसे मोहब्बत हमको नहीं क्यों
तुमसे मोहब्बत हमको नहीं क्यों
gurudeenverma198
अभी भी शुक्रिया साँसों का, चलता सिलसिला मालिक (मुक्तक)
अभी भी शुक्रिया साँसों का, चलता सिलसिला मालिक (मुक्तक)
Ravi Prakash
■ आज का विचार
■ आज का विचार
*Author प्रणय प्रभात*
मौसम का मिजाज़ अलबेला
मौसम का मिजाज़ अलबेला
Buddha Prakash
Loading...