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28 Sep 2020 · 1 min read

एक किसान की व्यथा

एक किसान जो धरती को माँ समझता है,
उस माँ को हरियाली की चुनरी से सजाता है,
बड़ी उम्मीदों से एक एक सपना पिरोता है,
खुद के आराम को पसीनों की बूंदों मे बदलता है,
कभी बारिश तो कभी तूफान तो कभी किसी और डर से डरता है,
तब कहीं जाकर——————
फसल उसके खेत मे लहलहा के सजती है,
उसकी आँखों मे जैसे खुशियों की बूंदें चमकती हैं,
यही सोचकर कि अपने घर को सजाऊँगा,
बड़े अरमानों से बिटिया को डोली में बिठाऊँगा,
हजारों सपने हजारों रंग भर दिल मे उमड़ते हैं,
लेकर सारी फसल जब वो बाज़ार जाता है,
ना जाने कितने बिचौलियों को अपने इर्द-गिर्द पाता है,
उनकी मनमानी कीमत अदा करके फिर भी आता है,
वो किसान जो दूसरों की थाली में रोटी सजाता है,
अपने सपनों को तो वो कहीं बेच आता है,
क्यूँ उसकी मेहनत का पैसा लोग जेबों मे भरते हैं,
जिनके घर आलीशान और दूर से ही चमकते हैं,
मेरी एक गुज़ारिश है सरकार के आगे——–
उसको ना बंगला ना मोटर ना कार ना बड़ा व्यापार चाहिए,
बस देदो उसको उतना जितने का वो हकदार पाइए,
किसानों से है ये दुनिया किसानों का कर्ज़ है हम पर,
हाथ जोड़कर है विनती अपना फर्ज़ निभाइए,
अपना फर्ज़ निभाइए ………………..!!!

Language: Hindi
1 Like · 478 Views
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