एक कहानी लगती है
गीतिका
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लावणी छंदाधारित
मात्रिक छंद,मात्रा -३०;
१६/१४ पर यति
समांत-आनी
पदांत-लगती है।
प्रेम भाव की भाषा तो अब, बहुत पुरानी लगती है।
जो इस दिल की दीवानी थी,वो अनजानी लगती है।।(१)
दूर बहुत ही हमसे हैं अब,होकर वो नजदीक बहुत,
कभी मिले थे उनसे भी हम,एक कहानी लगती है।(२)
भूल चुके हैं सब कुछ ही वो,जो पल हमने साथ जिये,
मुख मंडल पर भाव नहीं अब,मगर दिवानी लगती है।(३)
काल चक्र के नाग पाश में,हम दोनों ऐसे उलझे,
ये दुनिया अजनबी हुई है,,बिन पहचानी लगती है।।(४)
पके हुए बालों को देखो,सुना रहे अपनी गाथा
माथे पर सलवट मौसम की,ढली जवानी लगती है।(५)
??अटल मुरादाबादी?✍️