Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
10 Aug 2020 · 9 min read

एक अन्य पोम्पी – ( Pompeii )

उस दिन दोपहर करीब 12:00 बजे जब मैं सामान्य रूप से अस्पताल के ओपीडी में था अल्मोड़ा के डीएम विभाग से होती हुई सूचना आई कि उन्हें आपदा प्रबंधन के दिल्ली मुख्यालय से प्राप्त सूचना के आधार पर कुमाऊं गढ़वाल मंडल के बॉर्डर पर स्थित एक स्थान पर 3 दिन पहले आए बर्फ के तूफान में कुछ जान माल का नुकसान हुआ है , जिसमें आपदा प्रबंधन हेतु डीएम , एसएसपी के दल के साथ चिकित्सा दल को भी को भी वहां भेजा जाना है । वहां भी यह सूचना पीछे से ( retrograde manner ) में प्राप्त हुई थी । आमतौर पर जहां कहीं आपदा आती है वहां के लोग मदद के लिए अपने मुख्यालय से गुहार लगाते हैं ,पर यह स्थान इतने सुदूर क्षेत्र में स्थित था कि स्थानीय अधिकारियों को इसका पता नहीं चला और यहां उल्टा केंद्र से स्थानीय मुख्यालय को पता चला था कि उनके सुदूर क्षेत्र में कोई आपदा घटित हुई है । सूचना पाते ही आनन-फानन में एक चिकित्सा कर्मियों का दल तैयार किया गया जिसमें मैं भी था । करीब एक घंटे बाद हम लोग कुछ आवश्यक दवाइयां लेकर एंबुलेंस से चल पड़े और कुछ देर चलने के बाद हमारी एंबुलेंस डीएम और एसएसपी के काफिले से जुड़ गई करीब 5 घंटे चलते चलते रात्रि प्रहर होने तक हम लोग देघाट के पास सुरई खेत में एक पहाड़ी पर स्थित यात्री निवास ग्रह में पहुंच गए । यह यात्री निवास बहुत ही खुला बना हुआ था इसके हर कमरे में बड़े-बड़े शीशे लगे हुए थे वहां के चौकीदार ने हमें बताया कि इस स्थान ( sun rise point ) पर लोग सूर्योदय देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं । उस रात हम लोग खाना खा पी कर सुबह आगे चलने के लिए सो गए । सुबह उठकरउस पहाड़ी से हमने एक सुहाने सूर्योदय के दर्शन करने के बाद हम लोग नाश्ता कर अपने काफिले के साथ आगे चलने लगे ।
हमें यह बताया गया था कि उस जगह से आगे 12 किलोमीटर दूर स्थित काल घंटेश्वर के मंदिर तक ही हमारी हमारी गाड़ियां जा सकती हैं और उसके बाद 11 किलोमीटर के पैदल चढ़ाई मार्ग से होते हुए हम अपने गंतव्य आपदा स्थल कालिंका देवी जी के स्थान तक पहुंच पाएंगे । वहीं पर हम सब सबको एक बैग में ट्रैकिंग का आवश्यक सामान दिया गया था जिसमें एक छड़ी और बर्फ पर चलने वाले जूते भी शामिल थे । कॉल घंटेश्वर में एक शिव जी का मंदिर था जो एक छिछली पहाड़ी नदी के किनारे स्थित था । उस नदी को हम लोगों ने पैदल पार किया और उसके बाद हमारे सामने जो पहाड़ था वह पूरा बर्फ से ढका हुआ था जिसमें 11 किलोमीटर हमें पैदल चढ़कर जाना था । हम लोगों ने अपनी ट्रैकिंग किट से बर्फ पर चलने वाले जूते एवं एक छड़ी ले ली एवं शेष सामान वहीं अपनी गाड़ियों में छोड़ दिया ।थोड़ा सा दूर चलने के साथ ही हमें पिघलती हुई बर्फ दिखाई देने लगी । हम लोग धीरे-धीरे आगे बढ़ते जा रहे थे । उस समय हम लोग करीब 15 – 20 लोगों की संख्या में एक कतार बनाकर चढ़ते जा रहे थे ।
रास्ते में हमें पता चला कि बर्फीले तूफान वाले दिन वहां वहां कालिंका देवी जी के पूजन अनुष्ठान के मेले का आयोजन था । यह मेला उसी प्रकार से होता है जैसे कि मैदानी क्षेत्रों में कुंभ मेला लगता है अर्थात 6 वर्ष या 12 वर्ष के अंतराल पर । इन देवी के मेले एवं पूजन की तिथि के लिए वहां की देवी जब वहां के प्रधान पुजारी को सपने में दर्शन देकर अपने अनुष्ठान पूजन का आदेश देती है तब वह इस तिथि की घोषणा करता है । इस प्रथा के अनुसार उस दिन इस देवी पूजन मेले का आयोजन 4 साल बाद हुआ था और क्योंकि यह मंदिर कुमाऊं और गढ़वाल की सीमा के मध्य पर स्थित था अतः वहां पर कुमाऊनी और गढ़वाली दोनों ओर के लोग दूर-दूर से आकर काफी संख्या में वहां एकत्रित हुए थे । इन दो मेलों के बीच के वर्षों के अंतराल में भी लोग आकर अपनी मन्नतें मांगने की प्रार्थना करते थे और जब वे पूरी हो जाती थी तो मेले में अनुष्ठान करने आते थे जिसमें बलि दी जाने की भी प्रथा थी यह । उस दिन यह बर्फ का तूफान दिन में अचानक सुबह 11:00 बजे आया था , जिस समय यह मेला अपने चरमोत्कर्ष पर था तथा चारों दिशाओं से लोग सुबह से काफिलों के रूप में आकर यहाँ इकट्ठे हो रहे थे । वे अपने साथ बली के लिए भैंसे, बकरे मुर्गे आदि के साथ पूजा और खाने पीने का अन्य सामान भी लिए चल रहे थे । वे सब अपना यह मार्ग ढोल ताशे नगाड़े और तुरही बजाते हुए नाचते गाते , आगे आगे देवी की तोरण लिए झुंड बनाकर तय करते थे । कुछ मन में उम्मीदें लिए हुए और कुछ अपनी उम्मीद पूरी होने की खुशी लिए यह रास्ता तय कर रहे थे । यह सुनकर मुझे गोरखपुर के निकट स्थित तरकुलहा देवी का का मेला याद आ गया जो प्रतिवर्ष प्रथम नवरात्र को वहां लगता था और वहां भी लोग पशुओं की बली एवं देवी के पूजन के बाद वहीं ठहर कर खाते पकाते और उत्सव मनाते थे । जैसे-जैसे हम लोग ऊपर चढ़ते जा रहे थे बर्फ की मोटाई बढ़ती जा रही थी । लगभग आधा रास्ता चढ़ने के बाद चारों ओर नजर घुमाने पर झक सफेद बर्फ ही बर्फ थी और आगे जाने का रास्ता भी दुष्कर खड़ी चढ़ाई का था । यह बर्फ बारी के बाद के तीसरे दिन का दृश्य था और बर्फ जो गिरते समय ताजा मुलायम रुई के फाहों जैसी रही होगी से बदलकर मोटी मोटी चीनी के दानों जैसी क्रिस्टल के आकार की हो चली थी । उस बर्फ की तह वहां एक से डेढ़ मीटर की मोटी थी जिसमें हम लोग अपनी छड़ी के सहारे अपना संतुलन बनाते हुए चलते जा रहे थे ।
करीब तीन चौथाई दूरी पार करने के बाद हमारे सामने चारों ओर एक अविस्मरणीय ह्रदय विदारक दृश्य पसरा हुआ था । वहां से दूर-दूर जहां तक हमारी नजर जाती थी सिर्फ झक सफेद बर्फ ही बर्फ से ढके पहाड़ थे और हमारे चारों ओर जगह जगह पर भैंसे बकरे और कहीं-कहीं मुर्गे अपनी गर्दन से कटे पड़े थे । बर्फ में जैविक क्रियाएं थम जाती हैं अतः उन कटे पशुओं के शवों में कोई सड़न का चिन्ह नहीं था उनकी आंखें ताजा मछली की तरह की पारदर्शी कॉर्निया वाली थी जिसे बर्फ में रख दिया गया हो । ऐसा लगता था की अभी कोई उन्हें क्षण भर पहले ताजा काट के डाल गया हो उनका ताजा रक्त उन्हीं के आस पास बह कर चारों ओर बर्फ पर जम गया था तथा बर्फ पर पड़े होने की वज़ह से उसके रंग में बदलाव नहीं था और ताज़े रक्त की मानिंद रक्तिम था । हम लोग उन्हीं के बीच में रास्ता पार करते हुए मंदिर की चढ़ाई चढ़ रहे थे एक स्थान पर एक पत्थरों से बना चूल्हा था जिसमें आधी जली लकड़ियां और उनका कोयला पड़ा था , उस चूल्हे पर एक कड़ाही चढ़ी थी जिसमें कुछ अध भुना प्याज़ और मसाला पड़ा था पास में ही किसी सब्जी के छिलके हल्दी नमक मिर्च मसलों के पैकेट खुले लड़के पड़े थे । उससे कुछ दूरी पर एक ओल्ड मोंक रम की बोतल खुली पड़ी थी जो आधी भरी थी और उसके आसपास तीन चार गिलास लुढ़के पड़े थे जिनमें कुछ शराब पड़ी हुई थी । जैसे-जैसे हम ऊपर चढ़ते जाते थे वैसे वैसे ऐसे दृश्यों की संख्या बढ़ती जा रही थी । एक दो जगह इन पशुओं को पेड़ से बंधे हुए पाया जो अपना बंधन अंत समय तक ना मुक्त कर सके और वही बर्फ में दबकर ठंडे पड़ गए । यह सभी बली के हेतु लाए गए पशु बहुत साज श्रृंगार के साथ लाए गए थे वह अपने गलों में पुष्पों और रंगीन गुुटका की मालाओं से सुसज्जित और उनके मस्तक रोली कुमकुम हल्दी से रंजित थे । उस स्थान पर इतने सारे कटे मृत पशुओं के 3 दिन पुराने शवों के वहां होने के बावजूद वातावरण में कोई बदबू का निशान नहीं था । वहां का सभी कुछ लगता था जैसे बर्फ में जमकर रह गया हो । उस बर्फीले तूफान ने वहां के उस समय को भी जमा दिया था जो कभी रुकता नहीं पर अब वो समय यहाँ जम कर ठहर गया था , वह आगे बढ़ना रुक गया था । चारों ओर नीरवता पसरी हुई थी और सभी दृश्य जड़ स्थिर थे ऐसा लग रहा था कि अभी कुछ जादू होगा और एक कोलाहल मचेगा जिससे यह दृश्य जीवंत हो उठे गा और मेला फिर से शुरू हो जाएगा । वही लोग यहाँ आ कर फिर से उत्सव मनाने में जुट जाएंगे । हम लोग ऐसा समझ गए थे कि अब और आगे ऊपर जाने पर हमें कुछ नया नहीं मिलेगा , वहां हमें कोई नहीं मिलेगा फिर भी यह तय हुआ कि हम लोग उस पहाड़ की चोटी तक जो अब करीब कुछ मीटर दूर रह गई थी जाएंगे । अतः हम लोग किसी तरह हिम्मत बटोर कर चढ़ते गए और शिखर तक पहुंच गए ।
वहां जाकर देखा तो उस पर्वत शिखर पर एक छोटा सा प्रांगण था जो चारों ओर स्थानीय पत्थरों को चुनकर चाहर दीवारी से घेेरा गया था और ऐसी ही पत्थरों की छोटी सी दीवार उस मंदिर से शुरू होकर दूर-दूर तक दिशाओं को बांट रही थी । हमें बताया गया कि जहां हम खड़े हैं यह कुमाऊं और गढ़वाल के बीच की सीमा है और इन पत्थरों की कृतिम दीवार के एक और कुमाऊं है तथा दूसरी ओर गढ़वाल ऐसी स्थिति में बचाव दल गढ़वाल से भी यहां भेजा जा सकता था । उस प्रांगण में देवी कालिंका का सफेद रंग से पुता एक छोटा सा मंदिर विद्यमान था जो आधा बर्फ से ढका था । प्रांगण में चारों ओर बर्फ के बीच रोली अक्षत चुनरी और जौ काफी मात्रा में बिखरे हुए थे । चारों ओर बर्फ की सतह पर सूरज की किरणें चमक रही थीं , ऊपर खिला हुआ नीला विस्तृत गगन और नीचे दूर-दूर तक जहां नजर जाती थी सफेद बर्फ ही बर्फ की चमक की रोशनी हमारी आंखों को चौंधिया रही थी । वहां बर्फीली खुश्क तेज़ चुभने वाली हवा चल रही थी । दूर-दूर तक किसी पेड़ या पक्षी का नाम ओ निशान दिखाई नहीं दे रहा था । हम सब ने बारी बारी से देवी जी की प्रतिमा को श्रद्धा से नमन किया ।
अब हम लोगों ने उसी रास्ते से नीचे उतरने का निर्णय लिया । आते समय फिर वही दृश्य चारों ओर बिखरा पड़ा था । उस निर्जनता में किसी मरीज के मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी । लौटते समय पहाड़ से नीचे आने पर रास्ते में हमें एक-दो गांव मिले जिनके परिवारों के बीच हमने भ्रमण किया । वहां कोई मरीज तो नहीं मिला पर कुछ गांव वालों की हाथ और पैरों की उंगलियों में फ्रॉस्ट बाइट के निशान थे जिन्हें हमने कुछ हिदायत के साथ प्राथमिक उपचार एवं दवाई दी । उन गांव वालों ने हमें उस स्त्री के बारे में बताया जो बर्फीले तूफान में फंसने पर अत्याधिक थक कर एक जगह बैठ गई थी और वहीं पर उसके पति ने अपना ओवरकोट उतार कर उसको उससे ढक दिया था , यह कहकर कि मैं अभी अन्य गांव वालों की मदद से तुम्हें लेने आऊंगा , पर तूफान थमने के बाद जब वे लोग उसे लेने वहां पहुंचे तो उन्हें उसकी पत्नी का मृत शरीर ही वहां पर मिला । वहां के निवासियों की कठिन परिस्थितियों में जीवन यापन करते देखकर उनसे विदा लेते हुए हम नीचे आ गए । हमें हमारी गाड़ियां मिल गई और हम लोग वापस लौटने लगे ।
प्रकृति की विनाश लीला का जो स्थिर दृश्य मैं ऊपर पहाड़ पर देख कर आया था उससे मुझे करीब 2000 साल पहले रोमन काल में एक ज्वालामुखी के विस्फोट से जब उसका एक पॉम्पेई ( pompeii ) नाम का शहर अचानक गर्म लावे और राख से ढक गया था और उसमें जिंदगी ऐसे ही जड़ हो गई थी याद आ गया फर्क केवल यह था कि यहां प्रकृति ने विनाश लीला के लिए ठंडी बर्फ का स्वरूप लिया था और वहां गर्म राख और लावे का । समय दोनों स्थानों पर जैसा का तैसा ठहर गया था ।
वर्तमान समय में करोना की महामारी से उत्पन्न वैश्विक लॉक डाउन में मुझे यह घटनाएं तर्कसंगत लगती हैं । हमारी यह मानव सभ्यता इस प्रकृति के सामने कितनी बौनी है । कभी-कभी हमें प्रकृति परिस्थितियों में बांध कर , जड़कर एक मौका देती है यह समझने का कि हम कहां से आए हैं और हमें कहां जाना है और इस बीच हम क्या कर रहे हैं ।

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 1 Comment · 491 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
2894.*पूर्णिका*
2894.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
Few incomplete wishes💔
Few incomplete wishes💔
Vandana maurya
महल चिन नेह का निर्मल, सुघड़ बुनियाद रक्खूँगी।
महल चिन नेह का निर्मल, सुघड़ बुनियाद रक्खूँगी।
डॉ.सीमा अग्रवाल
माॅं
माॅं
Pt. Brajesh Kumar Nayak
इज़हार कर ले एक बार
इज़हार कर ले एक बार
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
जुदाई की शाम
जुदाई की शाम
Shekhar Chandra Mitra
दिल की बातें....
दिल की बातें....
Kavita Chouhan
बिना काविश तो कोई भी खुशी आने से रही। ख्वाहिश ए नफ़्स कभी आगे बढ़ाने से रही। ❤️ ख्वाहिशें लज्ज़त ए दीदार जवां है अब तक। उस से मिलने की तमन्ना तो ज़माने से रही। ❤️
बिना काविश तो कोई भी खुशी आने से रही। ख्वाहिश ए नफ़्स कभी आगे बढ़ाने से रही। ❤️ ख्वाहिशें लज्ज़त ए दीदार जवां है अब तक। उस से मिलने की तमन्ना तो ज़माने से रही। ❤️
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
आज मानवता मृत्यु पथ पर जा रही है।
आज मानवता मृत्यु पथ पर जा रही है।
पूर्वार्थ
#अंतिम_उपाय
#अंतिम_उपाय
*Author प्रणय प्रभात*
फ़ितरत
फ़ितरत
Manisha Manjari
रोटियों से भी लड़ी गयी आज़ादी की जंग
रोटियों से भी लड़ी गयी आज़ादी की जंग
कवि रमेशराज
"फितरत"
Ekta chitrangini
सत्य = सत ( सच) यह
सत्य = सत ( सच) यह
डॉ० रोहित कौशिक
हिसका (छोटी कहानी) / मुसाफ़िर बैठा
हिसका (छोटी कहानी) / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
एकता
एकता
Dr. Pradeep Kumar Sharma
मानव  इनको हम कहें,
मानव इनको हम कहें,
sushil sarna
मुक्तक-
मुक्तक-
डाॅ. बिपिन पाण्डेय
एक ऐसा दोस्त
एक ऐसा दोस्त
Vandna Thakur
कभी न खत्म होने वाला यह समय
कभी न खत्म होने वाला यह समय
प्रेमदास वसु सुरेखा
कैमिकल वाले रंगों से तो,पड़े रंग में भंग।
कैमिकल वाले रंगों से तो,पड़े रंग में भंग।
Neelam Sharma
बादल (बाल कविता)
बादल (बाल कविता)
Ravi Prakash
हर दर्द से था वाकिफ हर रोज़ मर रहा हूं ।
हर दर्द से था वाकिफ हर रोज़ मर रहा हूं ।
Phool gufran
"ये कविता ही है"
Dr. Kishan tandon kranti
इंसान जीवन क़ो अच्छी तरह जीने के लिए पूरी उम्र मेहनत में गुजा
इंसान जीवन क़ो अच्छी तरह जीने के लिए पूरी उम्र मेहनत में गुजा
अभिनव अदम्य
6. शहर पुराना
6. शहर पुराना
Rajeev Dutta
ईमेल आपके मस्तिष्क की लिंक है और उस मोबाइल की हिस्ट्री आपके
ईमेल आपके मस्तिष्क की लिंक है और उस मोबाइल की हिस्ट्री आपके
Rj Anand Prajapati
खुद को इंसान
खुद को इंसान
Dr fauzia Naseem shad
अनजान राहें अनजान पथिक
अनजान राहें अनजान पथिक
SATPAL CHAUHAN
पहुँचाया है चाँद पर, सफ़ल हो गया यान
पहुँचाया है चाँद पर, सफ़ल हो गया यान
Dr Archana Gupta
Loading...