एकावली छंद
शिल्प — ५-५ पर यति, १० मात्रिक छंद, दो – दो चरण समतुकान्त!!
लोभ से, दूर हो ।
धर्म मेंँ, चूर हो।।
त्याग का , भान हो।
तभी तो मान हो।।
सत्य पथ, पे चलो।
द्वेष में, ना जलो।।
राम ही, सत्य हैं।
सत्य ये, तथ्य है।।
राम का, नाम लो।
जीवन सवार लो।।
दम्भ में, ना रहो।
सत्य पथ, ही गहो।।
राम से, प्रीत कर।
लोभ को, जीत कर।।
राम से , नेह कर।
धर्म से, स्नेह कर।।
✍️पं.संजीव शुक्ल “सचिन