उसकी याद
उसके बदन पर पानी की बुँदे, ऐसे ठहरी कि हमैं प्यास लग गयी ।
हम रेत के दरिया से गुजर रहे थे, और रास्ते में बहती नदी मिल गयी ।।
उसके बारे में सोचा ही था, सामने से मखमली हवा चलने लगी ।
पसीना जमीन पर गिरता, उससे पहले बारिस होने लगी ।।
रात भर मैं उसे देखता रहा, वो मुझे देखती रही ।
यादों का फसाना बनता, उससे पहले शुबह होने लगी ।।
उसकी लटों को जैसे छुआ, मौसम में शांति पसर गयी ।
वो बिखर गयी रेत की तरह,मेरी रूह उसमे समा गयी ।।
मैंने उसका हाथ पकड़ा था जोर से, वो रेत की तरह फिसल गयी ।
मैं देखता ही रह गया, और वो दूर आंधी बनकर उड़ गयी ।।