उल्फ़त का आग़ाज़
उल्फ़त का आग़ाज़ हो गया
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नज़रों से नज़रें मिलाना अन्दाज़ हो गया है।
समझिए दिल में उल्फ़त का आग़ाज़ हो गया है।।
इन मस्ती भरी आँखों के जाम पी जी रहे हैं।
आसान ज़िंदगी का सफ़र यूँ आज़ हो गया है।।
लब शर्म से हैं सिलें कुछ कहने की हिम्मत नहीं।
इन नज़रो नें सब कह दिया हमराज हो गया है।।
दोनों तरफ़ लगी आग जल रहे हैं दो दिलजले।
बुझाए बुझे ना रोग लाईलाज़ हो गया है।।
सबकी नज़र में खटकने लगे रुस्वा इतने हैं।
सिला मिला प्यार में कि वैरी समाज हो गया है।।
सरे-महफ़िल उनके हुस्न की तारीफ़ क्या कर दी।
क़दम जमीं पर टिकते न वो सरताज हो गया है।।
कृष्ण की राधा ये कैसे कहूँ मैं यार “प्रीतम”!
कान्हा प्यार में अब एक कलाबाज़ हो गया है।।
********राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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