उम्मीद के दिए को बुझाया न जाएगा
आज की हासिल
ग़ज़ल
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मुझसे किसी के दिल को दुखाया न जाए गा ।
तहज़ीब को बड़ों की मिटाया न जाए गा
तूफान लाख ग़म के ही आ जाएँ जीस्त में
उम्मीद के दिये को बुझाया न जाए गा
आज़ाद रहना चाहते आज़ाद ही रहें
पंक्षी के पर कतर के उड़ाया न जाए गा
कब तक रहे क़फस में परिन्दा ये क़ल्ब का
ज़ज़्बात और दिल में दबाया न जाए गा
बीमार को जब तक न शिफ़ा कामिला मिले
तब तक दुआ से हाथ गिराया न जाए गा
आमाल जिन्दगी में सदा रखना तुम
वरना खुदा को मुँह ये दिखाया न जाए गा
“प्रीतम” नहीं मिले जो रज़ा तेरी ऐ खुदा
सिज़्दे से तेरे सिर ये उठाया न जाएगा
प्रीतम राठौर भिनगाई
श्रावस्ती (उ०प्र०)
08/09/2017
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