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29 Aug 2020 · 1 min read

उपहार

सुनो! शिष्य करते सम्मान यदि,
मत दे वह उपहार कभी,
जो उपज हुआ मन का मैला,
गुरु शिष्य एक ही, दक्ष धरा के,
एक पथ, एक दिशा के,
एक लक्ष्य, एक वेग के,
एक धीर राह चलने वाला,
मत दे वह उपहार कभी,
जो उपज हुआ मन का मैला ।

स्नेह बीज, हर पांत में बोए,
अमिट कांति ,हर जन में होए,
विध्वंस भाव हर दिशा में रोए,
हैं तम नाशक, हम प्रचंड ज्वाला,
मत दे वह उपहार कभी,
जो उपज हुआ मन का मैला ।

हैं हम, कर्म भूमि के योगी,
वही विलासिता, उसी सोमरस के भोगी,
तेरी समृद्धसम व्याधि के रोगी,
मिला उपराग, चला भर -भर झोला,
मत दे ,वह उपहार कभी,
जो उपज हुआ मन का मैला ।

उमा झा

Language: Hindi
14 Likes · 6 Comments · 481 Views
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