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21 Sep 2017 · 2 min read

उपहार

??उपहार??
“मेरे ब’र्डे पर मुझे इस बार साइकिल ही गिफ्ट में चाहिए,दादी” “अरे क्यों नहीं।कौन मना करेगा मेरे बाबू के गिफ्ट के लिए?सुन लो सब,इस बार मेरे बाबू को जन्मदिन पर उसकी पसन्द की साइकिल ही दिलवाना” दादी ने प्यार से अमन को गोद में भरा।”हाँ,अगर कोई मना करेगा तो दादी-बाबा जायेंगे लाठी टेककर बाबू की साइकिल लेने”बाबा ने हँसते हुए अपना प्यार उड़ेला।
घर भर के लाडले इकलौते बेटे अमन की डिमान्ड को नज़रअंदाज़ करना मम्मी पापा भी नहीं चाहते थे,इसलिए शीघ्र ही साइकिल की दुकानें उनका भ्रमण पड़ाव बनीं।लाड प्यार से पला अमन नकचढ़ा था,उसे कोई भी साइकिल पसंद नहीं अाती।”इसकी गद्दी अच्छी नहीं”,”इसका कलर कितना गन्दा है”, “इसका हैण्डल अच्छा नहीं है” कई साइकिलें इस मीन मेख की भेंट चढ़ रीजेक्ट हो गयीं।दुकान मालिक खीझ गया।”क्या बे कामचोर!सा… मक्कार कहीं का।अच्छी साइकिल न निकाली जा पा रही तुझसे।कस्टूमर को एक साइकिल पसंद न आ पायी एक घंटे से।काम का न काज का दुश्मन अनाज का” सारी भड़ास दुकान पर काम करने वाले अमन के ही हमउम्र लड़के छोटू पर निकली।दुकान मालिक का लहजा इतना तल्ख था कि अमन,मम्मी,पापा सबको बहुत बुरा लगा पर वे सब एक दूसरे का चेहरा देखकर ही रह गये।छोटू के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे,शायद वह इसका अभ्यस्त था।वह फिर गोदाम में गया और अबकी बार एक नीले रंग की साइकिल उठा कर लाया।मम्मी ने देखा कि अब अमन का व्यवहार बदला बदला सा था,उसे झट से वह साइकिल पसंद आ गयी थी और वह छोटू के साथ बड़ा मित्रवत होकर बातें कर रहा था।मम्मी पापा के चेहरे पर राहत और फक्र की संयुक्त मुस्कान थी।दुकान मालिक भी अब संयत होकर बिलिंग की कार्यवाही कर रहा था।”अरे छोटू!एक बार चला के दिखा दियो साइकिल।” छोटू के चेहरे पर चमक आ गयी थी।वह फूर्ति से उठा और साइकिल को बड़े प्यार से सहलाता हुआ उस पर सवार हो गया।सर्रर से साइकिल चलाता हुआ वह फेरा लगाने लगा।अब सब को अपने अपने उपहार मिल गये थे।
✍हेमा तिवारी भट्ट✍

Language: Hindi
401 Views
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