उपहार
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शोक-मग्न है भावी पीढ़ी कैसा यह उपहार!
हवा विषैली,दूषित पानी एवम् नग्न पहाड़।
रोटी और दाल के लिए लड़ रहे थे लोग।
अब तो हवा,पानी को झगड़ रहेंगे लोग।
समय एक औजार है और अनुभव है कर्मकार।
मानव अनगढ़ शिलाखण्ड,गढ़ता करता तैयार।
शुचि,सुंदर व सर्वहित डाल मनुज हर परम्परा।
सुधिजन लें अवतार तथा सभ्य रहे यह सभ्यता।
सृष्टि निपट निराश्रित अपने में सम्पूर्ण।
स्रष्टा भी इस हेतु है साष्टांग सम्पूर्ण।
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