उनसे चाह के मागना……21212 : 21212: 212
वस्ल की रिदा में तन्हाई देते रहे
स्याह अंधियार परछाई देते रहे
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उनसे चाह के मागना मुनासिब न था
बात-बात में जो सफाई देते रहे
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उफक तक कदम-कदम अनुशरण भी किया
दूर मोड़ तक वो दिखाई देते रहे
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इतमिनान से भर गया खजाना तेरा
क्या पता कहाँ किसे कमाई देते रहे
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हाथ में कंगन, चूड़ियां कलाई भरी
जिंदगी तुझे मुह दिखाई देते रहे
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सुशील यादव
न्यू आदर्श नगर दुर्ग
5.7.17