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20 Oct 2019 · 1 min read

उधेड़बुन

सोचता हूँ कि ज़िन्दगी कितनी कम है।
सुबह जाग कर सोचता दिन भर क्या करना है ।
दिनभर की योजना बनाकर रखता पर पूरी न कर पाता।
शायद मेरी सोच और क्रियान्वयन मे फर्क है।
या मेरे कार्यशैली सोच से अलग है।
या मेरे कार्य प्रगती पर औरौं का दख़ल है।
इसी उधेड़बुन मे दिन निकल जाता।
रात गुज़रती फिर सवेरा आता।
और फिर एक नयी सोच लिये योजना बनाने लगता।

Language: Hindi
1 Like · 287 Views
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