उत्तराखण्ड के सुप्रसिद्ध निर्देशक, पटकथा लेखक व रंगकर्मी सुरेंद्र भंडारी जी का देहान्त
कितने ही अनमोल हीरे कोरोना संक्रमण ने 2020-21 के मध्य में हमसे छीन लिए हैं। रंगकर्मी और अभिनेता सुरेंद्र भंडारी भी आज दिनांक 7 मई 2021 ई. को कोरोना की भेंट चढ़ गए हैं। कोविड-19 की चपेट में आने के बाद सुरेन्द्र भाई जी पिछले दो हफ़्ते से कर्जन रोड़ स्थित अस्पताल में भर्ती थे। जहाँ उन्होंने आज शुक्रवार की सुबह क़रीब एक बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। जैसे ही सोशल मिडिया में इस होनहार कलाकार की मृत्यु की सुचना फैली, उत्तराखंड के राजनैतिक, सांस्कृतिक व फ़िल्मी जगत में भारी शोक की लहर दौड़ गई और सोशल साइट पर सबने अपने-अपने तरीक़े से दिवन्गत आत्मा की शान्ति के लिए संवेदनाएँ प्रकट कीं तो कुछ ने उनके साथ जुड़े क़िस्सों को शेयर किया है।
यूँ तो भंडारी जी ने रंगकर्म यात्रा में काफी लंबी व यादगार पारी खेली। जहाँ उन्होंने अनेक नाटकों में अपना योगदान दिया। उनमें से कुछ के नाम इस प्रकार हैं— ‘राग दरबारी’; ‘अन्धा युग’; ‘डेथ इन इन्स्टालमेन्ट’; ‘कॉफ़ी हाउस में इंतेज़ार’; ‘बेगम का तकिया’; ‘ख़ौफ़ की परछाइयाँ’; ‘बड़ी बुआ जी’ आदि। इसके अलावा वह नाट्य संस्था ‘अभिरंग’, ‘वातायन’ से भी जुड़े थे। जहाँ वह नाटकों की पटकथा ही नहीं लिखते थे, वरन उन नाटकों का कुशल निर्देशन भी करते थे। इसी तरह उन्होंने अन्य मशहूर रंगकर्मी साथी मुकेश धस्माना जी के साथ मिलकर युवामंच का गठन भी किया था। उनके भीतर एक कुशल चित्रकार भी था। बहुमुखी प्रतिभा के धनी सुरेंद्र भंडारी पेंटिंग का शौक़ भी रखते थे।
मुकेश जी ने एक बार बताया था कि ‘नमक सत्याग्रह’ नाटक में उन्होंने बड़े पर्दे को अपने हाथों से स्वयं डिजाइन किया था। इतना ही नहीं, बड़े से बड़ा और छोटे से छोटा काम भी बड़ी ख़ुशी से वह अपनी नाट्य प्रस्तुतियों में करते थे। मसलन रूप सज्जा (कलाकारों का मेकअप) हो या मंच सज्जा (नाटक में इस्तेमाल होने वाली वस्तुएँ) वह हर चीज़ को अपने समृद्ध नाटकीय दृष्टिकोण से परखते, सजाते व संवारते थे। कुल मिलके कहा जाये तो ये कि सुरेन्द्र भाई अपने आप में जीते-जागते नाट्य संस्थान थे। उन्हें समय-समय पर अनेक संस्थाओं ने सम्मानित भी किया था।
वैसे रंगमंच में रमे सच्चे कलाकारों को चित्रपट सिनेमा कम ही भाता है। हालाँकि भंडारी जी को गढ़वाली फ़िल्म “कभी सुख कभी दुख” में अभिनय तथा “मेरी प्यारी बोई” के बेहतरीन दिग्दर्शन के लिए सदैव स्मरण किया जाएगा।
सन 1995 ई. से 2000 ई. तक चले पृथक उत्तराखंड राज्य आंदोलन की मांग के दौरान भी सुरेंद्र भंडारी जी ने उत्तराखंड सांस्कृतिक मोर्चा के ज़रिये अपनी सक्रियता नाट्य प्रस्तुतियों से निरन्तर दर्शायी। आन्दोलन को एक दशा व दिशा देने की दृष्टि से अहम भूमिका निभाई। उन्होंने उस वक़्त की समस्त साांस्कृतिक, राजनैतिक गतिविधियों में खूब बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उस काल मेंं सुरेंद्र भंडारी जी द्वारा रचित नुक्कड़ नाटक “केंद्र से छुड़ाना है” के मंचन ने न केवल बहुत ‘वाहवाही’ बटोरी बल्कि आंदोलनकारियों का मार्गदर्शन भी किया। मुज़्ज़फ़र नगर (बिजनौर, उत्तर प्रदेश) में जो आन्दोलनकारी स्त्रियों के साथ बलात्कार हुए, (तब मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे) उसकी काफ़ी मुखर आलोचना सुरेन्द्र भाई ने भी की थी। ये ख़बर कई दिनों तक मैदान से लेकर पहाड़ तक की पत्र-पत्रिकाओं की सुर्खियाँ बनी रही थीं। जिसके लिए मुलायम सिंह ने माफ़ी मांगी थी।
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