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31 May 2020 · 1 min read

उँगलियाँ मात्र गिनती हैं।

समेटे हुए पल उसने जूड़े में बाधा है।
इसलिए वो अब बाल खुले रखती नहीं ।

बकबक करती घूमती थी जो आंगन में।
सिर्फ सुनती है किसी को कुछ कहती नहीं ।

उँगलियाँ मात्र गिनती है जिम्मेवारी की।
हथेली में जगह लकीरों की भी रखती नहीं।
-शशि “मंजुलाहृदय”

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