ईर्ष्या
विषय-ईर्ष्या
विधा-छन्दमुक्त कविता
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ईर्ष्या निकलती नहीं मन से,
प्रतियोगिता लगाते हैं धन से।
ईर्ष्या से जल के राख हो जाते,
कुछ भी बोलते, बेबाक हो जाते।
ईर्ष्या तरक्की में बाधक होता है,
ना जीवन में कभी राहत होता है।
ईर्ष्या मानवता कम कर देती है
ये तो आंखों को नम कर देती है
नूरफातिमा खातून नूरी
जिला-कुशीनगर