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17 Oct 2018 · 1 min read

ईमान

ईमान

कहीं गीता,कहीं बाइबिल, कहीं कुरान बिका।
कही मुफलिसी में, कही लोभ में इंसान बिका।
चलते थे सरे राह बड़े आन-बान से
बरफ़-सा पिघलकर आज वो गुमान बिका।

बेबस मजलून की फरोख्त होती तो आम है।
आबो रसूख की नीलामी आज हुई सरेआम है।
अशर्फियों की थैली लिए, है बेसाहते सौदागर
रंज बस इतनी, इतने सस्ते में क्यूँ ईमान बिका।

दरीचों पे जिनके दौलत के परदे सजाएँ है।
अकल पे अख्ज के स्याह से परदे ये छाएँ है।
किस शान से ईमान रख दिये हैं ताक पे
बड़े आराम से देखो,फिर एक दौलतवान बिका।

दौलते हुश्न का तो वो एक ही रखवाला था।
सब कहते है वो बड़ा ही रसूखवाला था।
खोट नियत में थी,कमी आदमियत में थी
किस चिलमन की सरक पे वो दरबान बिका।

बीती थी जिन्दगानी भटकती-सी धूप छाँव में।
हो रही है सुगबुगाहट गड़े मुरदों के गाँव में।
जाती,धरम बिक गई ,लाजों-शरम बिक गई
क्या कमी थी जरीब को कि ये कब्रिस्तान बिका।

-©नवल किशोर सिंह

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