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18 Mar 2020 · 4 min read

ईमान बिक गया ढेले में

बड़ा अचम्भा देखा हमने, इस दुनिया के मेले में
बेईमानी में मिले करोङों,ईमान बिक गया ढेले में

झूठ का सब बाजार लगा है, लूट रहा है जादूगर
सड़कों पर हो गया उजाला, घुसा अँधेरा है घर-घर
खाना पकने से पहले ही गैस बुझ गयी चूल्हे की
सारा शरीर जब स्वस्थ हुआ तब हड्डी टूटी कूल्हे की
ताँगे को जो खींच सके वह शक्ति नहीं अब घोड़ों में
लूट के जनता का पैसा घोटाले हुए करोङों में
क्लोरोफार्म सूंघकर बैठी जनता इसको होश नहीं
जड़ें हिला दे शासन की ऐसा इसमें आक्रोश नहीं

घुटन हो रही है अब इनके लम्बे-चौड़े वादों से
लुप्त हो गए स्वाद सब्जियों के जहरीली खादों से
आलू में तीखापन है,आ गयी मिठास करेले में
बेईमानी में मिले करोङों,ईमान बिक गया ढेले में

रंग भी बदले, ढंग भी बदले पर बदली तस्वीर नहीं
हम भी बदले,तुम भी बदले पर बदली तकदीर नहीं
न जाने किसकी करनी का फल ये बच्चे पाते हैं
सर्दी में ठिठुरते सड़कों पर भूखे-नंगे सो जाते हैं
आज़ाद देश के वासी हैं ये पर इनको कुछ याद नहीं
देश है अपना,लोग हैं अपने पर अब भी आजाद नहीं
भीख मांगते,कूड़ा बिनते अपना बचपन ढोते हैं
बीमारी में चीख-चीखकर सारी रात ये रोते हैं

तड़प-तड़प कर जिस माँ का बच्चा ऐसे मर जाएगा
उस माँ के आंसू की कीमत आखिर कौन चुकाएगा
मगर स्वार्थी दुनिया में पड़ता है कौन झमेले में
बेईमानी में मिले करोङों,ईमान बिक गया ढेले में

पढ़े -लिखे हम बड़े गर्व से तान के सीना चलते हैं
शिक्षक ,इंजीनियर,डॉक्टर गिरगिट सा रंग बदलते हैं
पढ़े-लिखे होने का ढोंग ये दिन भर खूब रचाते हैं
शाम को दारू पीकर के बीवी पर हाथ उठाते हैं
पढ़ा -लिखा कर बेटों की नीलामी कराई जाती है
शिक्षित लोगों के घर में क्यों बेटियां जलाई जाती हैं
न जाने क्या पढ़ा-लिखा क्यों रोज-रोज स्कूल गए
भौतिकता की आंधी में जब नैतिकता को भूल गए

रटी-रटाई बातें लिखकर नंबर तो मिल जाते हैं
मिलती नहीं वो विद्या जिससे ज्ञान चक्षु खुल जाते हैं
शिक्षा है व्यापार बनी डिग्रियां बिक रही ठेले में
बेईमानी में मिले करोङों, ईमान बिक गया ढेले में

ठेके में लेकर के कमीशन चलते एसी गाड़ी में
बीवी घूमे लक-दक लक-दक ठेकेदार की साड़ी में
बाबू, अधिकारी, चपरासी सारे रिश्वतखोर हो गए
जनता को सुरक्षा देने वाले देखो खुद ही चोर हो गए
सड़क बनी और उखड़ गयी पर भरी है जेब कमीशन से
जांच में सब कुछ सही मिला जी साहब की परमीशन से
खुद में पानी नहीं बचा नल में क्या पानी लाएंगे
बेशर्मों सा देश बेचकर ये त्यौहार मनाएंगे

चारा खा गए,चीनी खा गए ,कोयला खा गए नेता जी
टू जी स्पेक्ट्रम में फंसकर जेल आ गए नेता जी
न्यायाधीश ने दिया जमानत आ गए फिर से रेले में
बेईमानी में मिले करोङों, ईमान बिक गया ढेले में

पांच साल तो बीत गए दिल्ली लखनऊ में पड़े हुए
आया चुनाव तो वोट मांगने हाथ जोड़कर खड़े हुए
मंदिर-मस्जिद के झगड़े में खून बहाया लाखों का
रोते-रोते पानी मर गया जाने कितनी आँखों का
सम्पत्ति की खातिर भाई ने भाई को शूट किया
देखी मरीज की मजबूरी तो डॉक्टर ने भी लूट लिया
गुर्दा बेचा, लीवर बेचा मजबूरी में खून बिका
अपराधी के हाथो अपने देश का है कानून बिका

दुराचार और अनाचार के किस्से खूब उठाते हैं
अख़बारों में चटखारे ले-लेकर छापे जाते हैं
इनकी महल-अटारी बन गयी जनता खड़ी तबेले में
बेईमानी में मिले करोङों,ईमान बिक गया ढेले में

फूल न तोड़ो, पत्ती छोडो बच्चों को डांटा जाता है
मगर स्वयं ही हरे-भरे पेड़ों को काटा जाता है
पानी बचाओ पर्चे बांटे गायें गीत कव्वाली में
जाने कितना पानी रोज ही बह जाता है नाली में
फैलाते हैं वायु प्रदूषण जहर हवा में भरते हैं
बीमारी जब आती है शहरों में दौड़ा करते हैं
धन की खातिर बच्चों को खतरे की ओर धकेल दिया
खुद तो मरेंगे औरों को भी मौत के साये में ठेल दिया

जहर अन्न में, जहर हवा में, नीयत भी जहरीली है
जिन राहों पर चलते हैं वो राहें बड़ी नुकीली हैं
ख़त्म हो गयी सारी पूँजी बचा न कुछ भी थैले में
बेईमानी में मिले करोङों, ईमान बिक गया ढेले में

गेरुवे वस्त्र पहनकर बाबा जनता को भरमाते हैं
धर्म के नाम पे लूट के पैसा खुद को खुदा कहाते हैं
चार भजन और प्रवचन करके संत बने ये फिरते हैं
उतना ही ऊँचा उठते हैं जितना नीचे गिरते हैं
लम्बी पहन के कंठीमाला लम्बा तिलक लगाते हैं
खो जाते हैं ध्यान में प्रभु के ड्रामा खूब रचाते हैं
लम्बी चौड़ी बातें इनकी डर जाता है जनमानस
रखते सिर पर हाथ और बातें करते हैं भर कर रस

अपराधी बचने की खातिर दाढ़ी-बाल बढ़ाते हैं
देख के मौका मंदिर में बाबा बनकर रह जाते हैं
इतिहास कुकर्मों का लिखते ये मौका देख अकेले में
बेईमानी में मिले करोङों, ईमान बिक गया ढेले में

Language: Hindi
965 Views
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