ईद-उल-जुहा का पैग़ाम
मौहल्ले में, बस्ती में, गाँव में, शहर में सब आवाद हो ।
मेरे मौला रहम कर इतना, ईद पर सब खुश सब साथ हों ।।
कुर्बानी मेरी रूह की सौदा नही तेरी रहमतों का ।
ये विस्वास है मेरा तेरी दुनिया में तेरी मौजूदगी का ।।
सुखा कर अश्कें, रोक कर आवाज़ टूटे हुए मेरे दिल की ।
मंजूर कर मेरी क़ुर्बानी, यही तालीम है मेरी तेरी बफा की ।
गिरें है बहुत से फूल,बिखरें है बहुत से फूल,सब तेरा आदेश है मेरे मौला ।
नज़र रखना सभी पर, है सभी तेरे बनाये तेरे हाथों के खिलौना ।
पनप ना जाएं दिलों में नफ़रतें तेरी मौजूदगी में ।
करदे पाक साफ तश्वीर इस जहाँ की,अपनी रोशनी में ।।
मोहब्बत का पैग़ाम दे और खिला दे फूल इंसानियत की फिज़ा में ।
आसमाँ की चाँदनी में खिला है नूर, रौशनी दे ईद की रुमानियत में ।।