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1 Feb 2017 · 1 min read

इस बसन्त

इस बसन्त बीत जाये ठिठुरन रिश्तों की
मन का भ्रमर पूछे फिर अनुराग का पता
फूल खिले चहूँ ओर विश्वास के
सन्देह की बर्फ़ अब कुछ पिघलें ज़रा
मादक हवा बहे जो उतरी दिशा से
महकाये अब हर जीवन-आँगन
निराशा का पतझड़ गुज़रे
नूतन आस की अब कोपल फूटें
मृद बोल कोयल की कूक से
मरहम बनें कडवें जखम के
उन्मुक्त आकाश में उसूलों की डोर थामे
बेधड़क उड़े रूपहले सपनों की पतंग
सरस्वती का अब हाथ थामे
लक्ष्मी करे जीवन में आगमन
उल्लास मख़मल घास-सा
चूमे प्रगति पथ पे क़दम
-शालिनी सिंह

Language: Hindi
535 Views
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