इश्क़ -ऐ- हकीकी पर शेर
इस जीस्त की तमन्नाएँ कहीं खाक में ना मिल जाये ,
हर तमन्ना की बस एक ही आवाज़ के हम तेरे हो जाएँ ,
इसीलिए हर एक गाम पर ऐ मेरे खुदा -ऐ- महबूब !
तेरे दामां की आरज़ू करते हैं गर मेरे हाथों में आ जाये .
तेरे ही प्यार का सहारा है शायद ,
जो इतना गम उठा लेते हैं.
वर्ना ज़रा सा अकेला रह जाये इंसान ,
उसे दुनिया वाले मिटा देते हैं.
तेरे दीदार से है मेरी जिंदगी रोशन ,
तुझे न देखूं गर एक पल भी ,
तो जिंदगी में अन्धेरा छा जाता है.
मेरी जिंदगी की शमा गुल होने जा रही है,
अभी भी वक़्त है रस्में उल्फत की खातिर तो आ जाओ .