–इश्क़े-रोग–
हैरत से सभी लोग देखें मुझे।
दें ताना तेरा नाम लेके मुझे।।
तुमने लोगों से क्या कहा ऐसा।
पुकारें सब मंजनू कहके मुझे।।
महफ़िल में क़दम आपने जो रखे।
लगे छेड़ने सब रह रहके मुझे।।
बादल से निकला जब चाँद हँसता।
खिजाती ये शब मुस्क़राके मुझे।।
तन्हा गुमसुम बैठा जो चमन में।
दे गई बहार गुल खिलाके मुझे।।
उछाली कंकर जो सागर-दिल में।
लगी नाचने लहरें भिगोके मुझे।।
लिखने बैठा जो ग़ज़लें हारकर।
सौंपें शब्द तुझे संजोके मुझे।।
ये इश्क़े-रोग है ऐसा प्रीतम।
लगाए न लगा यार कहके मुझे।।
राधेयश्याम बंगालिया “प्रीतम”
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