इश्क़ हो मगर ऐसा ना हो
बेशक इश्क़ हो मगर ऐसा ना हो
कि होश भी अपना रहता ना हो
तुम जो मेरी इतनी तारीफ़ करते हो
जैसे कि मैंने आइना देखा ना हो
यह शहर छोड़ने से पहले सोच लो
जल्दबाज़ी में ग़लत फ़ैसला ना हो
दुश्मन जो हमारे घर तक आ गया
साज़िश में शामिल कोई अपना ना हो
उस ज़मीन को ही सहरा कहते हैं ‘अर्श’
जहाँ दूर-दूर तक कोई साया ना हो