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28 Nov 2016 · 1 min read

इश्क़ में हमारी बे-ज़ुबानी देखते जाओ

इश्क़ में हमारी बे-ज़ुबानी देखते जाओ
उस पर आलम की तर्जुमानी देखते जाओ

तुम ना आओगे कभी मुन्तज़िर हम फिर भी हैं
लिल्लाह प्यार की नातवानी देखते जाओ

देखो वही मंज़र वही आगाज़-ओ-अंजाम
बस बदल गए किरदार कहानी देखते जाओ

सब कुछ होता है मगर कुछ नहीं होता कहीं
तुम बिन कैसी है ज़िंदगानी देखते जाओ

होता था सुबह से इंतज़ार जिस शाम का कभी
उसी शाम की तुम बद -ज़ुबानी देखते जाओ

मेरे ना हुए हाय तुम किसी तरहा ए-सितमगर
अपनी यादों की मेहरबानी देखते जाओ

बेकार कर दिया था ‘सरु’ के इश्क़ ने ज़ालिम
अब दिल पे मेरी हुक्मरानी देखते जाओ

— सुरेश सांगवान’सरु’

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