इन्ही पेड़ों ने
ये जो पेड़ों को काटकर, तुमने अपना बेड बनाया है।
ये बदला है क्या पेड़ों का? जो बेड पर लिटाया है।
बिन आक्सीजन के बेजान सा हुआ है तूँ
इन्ही पेड़ों ने देखो क्या तुम्हे दिन दिखलाया है।
तुम्हे जरूरत पड़ी तो इनकी टहनी को छाँट डाले।
टुकड़े कर कर के इन्हें कई हिस्से में बाँट डाले।
सिलिंडर वाली आक्सीजन पे आज जी मचलाया है।
इन्ही पेड़ों ने देखो क्या तुम्हे दिन दिखलाया है।
प्रकृति से जो छेड़छाड़ किया है तुमने।
उसी के बल पर अब तक जिया है तुमने।
जीवन और मौत के बीच अब आक्सीजन ही आया है।
इन्ही पेड़ों ने देखो क्या तुम्हे दिन दिखलाया है।
जो मुफ्त में तुम्हे शुद्ध हवा देते थे।
हर पल तुम्हे जीने को दवा देते थे।
क्या जल से उनकी जड़ो को थोड़ा भी सहलाया है।
इन्ही पेड़ों ने देखो क्या तुम्हे दिन दिखलाया है।
– सिद्धार्थ