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6 Jan 2017 · 1 min read

इनको भी हक दो (बाल श्रमिक)

जिन काँधों पर बस्ता सजाना था
उन पर सजती जिम्मेदारी है
छोटी छोटी उम्र में हर खुशी
इन्होंने वारी है
नाजुक से हाथों में
फावड़ा कुदाल और आरी है
पढ़ने, खेलने खाने की उम्र में
परिवार की जिम्मेदारी है
जो वनाते है इनको बाल श्रमिक
क्या उनकी गलती नहीं भारी है?
इन आँखों में सपने तो हैं बङे बङे
पर समय न होना इनकी लाचारी है।
मत छीनो इनका बचपन
इनके सपनों को सजने दो
काँधों पर बस्ते दो
पढ़ने, खेलने, सोने, खाने
का समय दो।सोचो इनके बारे में
मत भूलो ये भविष्य हैं देश का
आगे जाकर इनके काँधों पर
देश की जिम्मेदारी है |
-रागिनी गर्ग

Language: Hindi
2 Likes · 221 Views
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