@इत्रों की खुशबू मंद पड़ गई@
सारे इत्रों की खुशबू
आज मंद पड़ गई ।
धरती अतुलित जलमय हो गई,
सृष्टि अनंत आनंदमय हो गई,
मिट्टी भई प्रसन्न आज
गंध बढ़ गई ।।
सराबोर नदियाँ और नाले,
जल हुआ दरिया के हवाले ।
झरनों में बेशक आज
सुरंग पड़ गई।
सारे इत्रों की खुशबू आज
मंद पड़ गई ।
उतर रहा है गगन धरा पर,
या उग आये पृथ्वी के पर!
सृष्टि में क्षणिक आज
धुंध पड़ गई !
बिजली कड़क रही है कड़-कड़,
बादल गरज रहे हैं गड़-गड़
सूरज की रोशनी आज
मंद पड़ गई ।
‘मयंक’ धरा में आज
सुगंध बढ़ गई ।
सारे इत्रों की खुशबू आज
मंद पड़ गई ।
रचयिता : के.आर.परमाल ‘मयंक’