इंसान ही हो ना तुम ,हैवान तो नहीं….
सुन ए इंसान !
कुछ तो संवेदनशील बनो ,
इतनी जायदा तंगदिली अच्छी नही ।
इंसान हो ,
इंसानियत की राह पर चलो ,
हैवानियत तुम्हारी संसृति के लिए अच्छी नहीं।
इन्सान ही हो ना तुम ,
पशु तो नहीं,
पशुत्व तुममें दिखता है कहीं ।
तुमसे तो पशु अच्छा है ,
वो अब भी संवेदनशीलता रखता है ।
तुम शायद पशु से भी बढ़कर तो नही ।
अब भी भूल चुके हो तो याद कर लो ,
तुम्हें ईश्वर ने क्यों बनाया इंसान ?
उसकी रचना को तुम यूं झुठला सकते नहीं।
अगर वास्तव में भूल चुके हो तो पछताओगे ,
वो फिर तुम्हें याद दिलाएगा ,
क्योंकि उसके दरबार में देर है अंधेर नही ।