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19 Jan 2017 · 1 min read

इंसान कहाँ इंसान रहा (विवेक बिजनोरी)

“आज सोचता हूँ कि कैसा है इंसान हुआ,
इंसान कहाँ इंसान रहा अब वो तो है हैवान हुआ
कभी जिसको पूजा जाता था नारी शक्ति के रूप में,
उसकी इज्जत को ही आज है बेईमान हुआ”

आज सोचता हूँ कि कैसा है इंसान हुआ

माँ को माँ ना समझता अब तो,
बाप पे हाथ उठता है।
बेटी को जनम से पहले कैसे मार गिरता है,
सोच सोच के ऐसी हालत मन मेरा परेशान हुआ।

आज सोचता हूँ कि कैसा है इंसान हुआ

दो दो बेटे होकर भी माँ बाप भूखे ही सोते हैं,
क्यूँ पला पोसा था इनको सोच सोच कर रोते हैं।
क्या देख रहा है ऊपर वाले कैसा तू भगवान हुआ,

आज सोचता हूँ कि कैसा है इंसान हुआ

कभी घरों में मिलजुल कर साथ में सब रहते थे,
कैसी भी हो विपदा सब मिलजुल कर वो सहते थे।
आज हुआ सन्नाटा घरों में जैसे हो समशान हुआ।

आज सोचता हूँ कि कैसा है इंसान हुआ
इंसान कहाँ इंसान रहा अब वो तो है हैवान हुआ।

(विवेक बिजनोरी)

Language: Hindi
1 Comment · 520 Views
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