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19 Jan 2018 · 1 min read

इंद्रधनुष

इंद्रधनुष –

एक संवाद

दूर कहीं
एक टूटे फूटे घर में
जहाँ गरीबी की परिभाषा भी शरमाती थी
माँ गोद लिए बैठी थी
अपनी इकलौती निधि को
बहलाती फुसलाती
बेटा रख हौंसला रोटी ला दूँगी
माँ भूख लगी है रोटी दे दो…
देख रंग इंद्रधनुष के
माँ ने चाहा नये सिरे से
बहलाना फुसलाना
देखो बेटा इस इंद्रधनुष के पार चलेंगे
रंग बिरंगे कपड़े होंगे
नये नवेले और खिलौने
जो मांगोगे वही मिलेगा
माँ भूख लगी है रोटी दे दो….
इंद्रधनुष के ऊपर
हम झूलेंगे
जैसा चाहो वैसे फिसलेगे
सुनते सुनते यही कहानी
आँखों मे सूखे ,भूखे से आँसू
देख निंदासी सी आँखों को
माँ उठी हौले से
बच्चा आँचल पकड़के
सुप्त स्वपन के मुखर स्वरों में
बोल उठा
माँ भूख लगी है रोटी दे दो…

मीनाक्षी भटनागर नई दिल्ली
स्वरचित
25-10-2017

Language: Hindi
388 Views
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