इंतज़ार
जिधर देखो हर शख्स़ सहमा सहमा सा नज़र आता है ।
गुम़सुम़ सा रहता है बात करने से भी घबराता है। दूर-दूर से कतरा के निकल जाता है।
रिश्तों में दूरियां बन रही है आदमी अपने ही घर में क़ैद होकर रह गया है।
बच्चों की किलकारियां भी गुम़ होकर कर रह गईंं है ।
सूनी सड़कें ,सूनी गलियां और बंद दरवाजे अजीब सा म़ाहौल प़ैदा कर रहे हैं।
लोगों के दिलो-दिम़ाग पर उस ब़ेशक्ल़ जरासिम़ का खौफ़ ताऱी है जो इस क़दर क़य़ामत बऱपा रहा है।
इंसानी फ़ितरत प़शेमाँ बनकर रह गई है।
फिर भी इससे निज़ात पाने की तदब़ीरें लगायी जा रही हैं ।
हर शख्स़ ये इंतज़ार कर रहा है कि श़ायद कोई कोश़िश़ कामय़ाब हो जाए ।
या कोई दुआ अस़र कर जाएं जिससे इस जरासिम़ का नाम़ोनिशाँ इस जहां से मिट जाए।