इंतज़ार
अब तुम लौट भी आओ तुम्हारा इंतज़ार हो रहा है…
न जाने कितने दिनों से जख्मों से कारोबार हो रहा है….
हसरतें रोज बढ़ रही है कब से तुम्हारा साथ पाने को…
मंज़िल को तो छोड़ो अब सफ़र भी दुश्वार हो रहा है….
जिंदगी अगर जंग में हो तो जीतना जरूरी हो जाता है…
पर ये खेल मेरे साथ एक पल में सौ बार हो रहा है….
चलो अब ख़त्म करते हैं इन नये रिवाज़ के सिलसिले को.
क्यूंकि ज़माना फिर से हम दोनों के बीच दीवार हो रहा है.
अगर सुन रही हो इस गजल की पंक्तयों को कहीं तुम…
तो समझना मेरे इश्क का ये भी इज़हार हो रहा है……