इंतज़ार
आंखों को किसी का इंतजार था।
न चाहते हुए भी दिल बेकरार था।
तिश्रगी मेरी कभी कम न हो सकी
राह में वैसे बहता आबशार था।
दवा नहीं तो दुआ ही तुम करते
आखिर को मैं तुम्हारा बीमार था।
इतने बेदर्द तुम क्यों हुये जाते हो
सोचो कभी मैं तेरा ग़मगुसार था।
अंधेरों से अब डर कैसा है ऐ दिल
छाती पर इनके सवेरा सवार था।
सुरिंदर कौर