Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
23 Jan 2020 · 3 min read

इंटरव्यू

आज कॉलेज में एक कंपनी आने वाली है। हफ्ते भर पहले से ही बहुत जोर – शोर से तैयारियां हो रही थी। ट्रेनिंग एंड प्लेसमेंट सेल ने तो पूरे कॉलेज में ये ऐलान करा दिया था कि हर एक विद्यार्थी को इसमें भाग लेना है। पढ़ने के लिए बहुत सारे विकल्प और नोट्स दिए गए थे, और आज वो दिन आ ही गया जब हमारी कक्षा के हर विद्यार्थी को अपना परिचय देने जाना है।
मैं अपने घर में बैठ के आराम से निश्चिन्त होकर अपनी ही धुन में थी तभी मेरा फ़ोन बजता है। मन नहीं था फिर भी मैंने उसमे देखा की अरे! यह तो मेरी घनिष्ठ मित्र का नंबर है। उत्सुकतावश मैंने बोला, “हेलो, कैसे याद किया ?”
उसने बड़े ही अच्छे भाव से कहा, कहाँ है तू? इंटरव्यू नहीं देना क्या?
मैंने बड़े मुस्कुराते हुए कहा नहीं मुझे इस कंपनी में नहीं जाना।
तब वह निराश सी हुई और बोली, “अच्छा चल तो अब तू मेरी सहायता करा दे।”
मैंने बड़ी ही सन्तावना देते हुए कहा- “हाँ क्यों नहीं, आखिर मैं तेरे लेया इतना तो कर ही सकती हूँ।
उसके बाद समय ऐसे ही काट गया और अब दोपहर के तीन बजने को थे। वो बार बार मुझे फ़ोन करती बताती की वो कितना डरी हुई है। मई उसे समझाती की बेफिक्र रह सब अच्छा होगा।
अब उसका फिर से फ़ोन आया और इस बार उसने मुझे बताया की युग सर आये है और उनके साथ दो साथी और भी है। इस नाम में अलग ही कसक थी और इसको सुन कर मैं अब से एक साल पहले की समृतियो में चली गईं।
उस दिन वह और इनके दो साथी आये थे। हमसे एक साल आगे जो विद्यार्थी थे उनका इंटरव्यू लेने। समय का फेर देखो उस साल मैंने सारा कार्यक्रम का आयोजन किया था। और आज मैं ही नहीं जा रही। एकदम से सब यादे ताज़ा हो गयी। उस एक दिन में मेरी उनसे इतनी बात हो गई थी कि वे अपनी हर जरुरत और काम के लिए पहले मेरे से बताते और फिर मैं जाकर अध्यापकों को। मैं वहाँ अकेले थी जो उनके हर काम में सहयोग दे रही थी। वह सब मुझसे अत्यंत प्रभावित हो गए थे। उसके बाद अब तक एक बार ही मेरी सर से बात हो पाई थी।
पता नहीं क्या ख्याल आया पर मैं एकदम से उठी और कॉलेज के लिए रवाना हो गयी।
असमंजस में थी मैं कि क्या उनको मैं याद हूँ? क्या वो मुझे पहचानेगे ?
मुझे वो नौकरी नहीं चाहिए मुझे तो बस उन सब से मिलना था।

जैसे तैसे मैं कॉलेज पहुंच ही गयी। अब बस मुझे मेरी बारी का इंतज़ार था। मेरे सहपाठी डरे सहमे से क्या पूछा और क्या बताया का ज़िक्र कर रहे थे और मुझे तो बस उन सब से मिलना था.
इंतज़ार ख़तम हुआ आखिर मेरा नाम पुकारा गया।
मेने हलके से दरवाजा खोला और उनको कहा , “गुड इवनिंग” क्या मैं अंदर जाऊ?
मेरी दो सहपाठी जिसमे मेरी मित्र भी थी उन सर क साथ बैठ केर उनके जवाब दे रही थी। दोनों के मुख से साफ़ नज़र आ रहा था की उनकी हालत ऐसी है जैसे एक बिल्ली के सामने चुहे की।
दरवाजा खोलते ही वो मुझे पहचान गए और मेरा स्वागत करते हुए बोले, “अरे कोर्डिनेटर साहब आइये आपको पूछने की क्या जरुरत है। तुमने ही पिछले साल हमारा सहयोग किया था। तुमसे मिलकर बहोत ख़ुशी हुई।”
उस समय मेरा मन प्रफ्फुल्लित हो उठा। आज जब मेरे सहपाठी अपना परिचय डरते हुए दे रहे थे तब उन्होंने स्वयं मेरा परिचय देते हुए स्वागत किया। मेरे कॉलेज में बहुत सी सोसाइटी थी लेकिन मेरा नाम उन में से किसी में ना ना आकर ट्रेनिंग और प्लेसमेंट में आया था। तब मई बहुत निराश हुई लेकिन आज इस इंटरव्यू ने मुझे एहसास दिला दिया था की ईश्वर जो करते है अच्छ के लिए करते है। आज इतना गर्वान्वित हो उठी मैं जैसे कोई बरसो बाद जीत मिली हो। और वह इंटरव्यू मेरी खुद से मुलाकात करा गया।

-खुशबू गोस्वामी

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 311 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अमर शहीद भगत सुखदेव राजगुरू
अमर शहीद भगत सुखदेव राजगुरू
Satish Srijan
"अहसास मरता नहीं"
Dr. Kishan tandon kranti
गर्व की बात
गर्व की बात
Er. Sanjay Shrivastava
समर्पित बनें, शरणार्थी नहीं।
समर्पित बनें, शरणार्थी नहीं।
Sanjay ' शून्य'
Ajj bade din bad apse bat hui
Ajj bade din bad apse bat hui
Sakshi Tripathi
गद्य के संदर्भ में क्या छिपा है
गद्य के संदर्भ में क्या छिपा है
Shweta Soni
एक मुलाकात अजनबी से
एक मुलाकात अजनबी से
Mahender Singh
दिल से मुझको सदा दीजिए।
दिल से मुझको सदा दीजिए।
सत्य कुमार प्रेमी
ज़िंदगी के फ़लसफ़े
ज़िंदगी के फ़लसफ़े
Shyam Sundar Subramanian
ढलती उम्र का जिक्र करते हैं
ढलती उम्र का जिक्र करते हैं
Harminder Kaur
सियासत में आकर।
सियासत में आकर।
Taj Mohammad
कविताएँ
कविताएँ
Shyam Pandey
---- विश्वगुरु ----
---- विश्वगुरु ----
सूरज राम आदित्य (Suraj Ram Aditya)
2865.*पूर्णिका*
2865.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
नारी निन्दा की पात्र नहीं, वह तो नर की निर्मात्री है
नारी निन्दा की पात्र नहीं, वह तो नर की निर्मात्री है
महेश चन्द्र त्रिपाठी
मेवाडी पगड़ी की गाथा
मेवाडी पगड़ी की गाथा
Anil chobisa
हमारे जैसी दुनिया
हमारे जैसी दुनिया
Sangeeta Beniwal
मनमुटाव अच्छा नहीं,
मनमुटाव अच्छा नहीं,
sushil sarna
किसका चौकीदार?
किसका चौकीदार?
Shekhar Chandra Mitra
भीगी पलकें...
भीगी पलकें...
Naushaba Suriya
"किसने कहा कि-
*Author प्रणय प्रभात*
कैसे कह दूं मुझे उनसे प्यार नही है
कैसे कह दूं मुझे उनसे प्यार नही है
Ram Krishan Rastogi
“आखिर मैं उदास क्यूँ हूँ?
“आखिर मैं उदास क्यूँ हूँ?
DrLakshman Jha Parimal
२०२३
२०२३
Neelam Sharma
You're going to realize one day :
You're going to realize one day :
पूर्वार्थ
"सुबह की किरणें "
Yogendra Chaturwedi
कितनी ही गहरी वेदना क्यूं न हो
कितनी ही गहरी वेदना क्यूं न हो
Pramila sultan
नारी-शक्ति के प्रतीक हैं दुर्गा के नौ रूप
नारी-शक्ति के प्रतीक हैं दुर्गा के नौ रूप
कवि रमेशराज
*दफ्तर बाबू फाइलें,अफसर मालामाल 【हिंदी गजल/दोहा गीतिका】*
*दफ्तर बाबू फाइलें,अफसर मालामाल 【हिंदी गजल/दोहा गीतिका】*
Ravi Prakash
संघर्षी वृक्ष
संघर्षी वृक्ष
Vikram soni
Loading...