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28 Jul 2020 · 1 min read

आज़ाद गज़ल

माना मै तेरी नफरत का भी हक़दार नहीं
मगर ऐसा कहाँ कि मुझे तुझसे प्यार नहीं ।

ये अलग बात है कि वो हैसीयत नहीं मेरी
मगर ये कैसे कह दूँ मै तेरा तलबगार नहीं ।

मैने सपनों का एक महल किया था खड़ा
थी मेरी ये सबसे बड़ी भूल ,इनकार नहीं ।

मना तो लिया है खुद को मगर क्या करूँ
दिल जो है मेरी तरह हुआ समझदार नहीं ।

बदल सकता नहीं मेरी चाहत का मज़मून
मोहब्बत है मेरी कोई वादा-ए-सरकार नहीं
-अजय प्रसाद

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