आज़ाद गज़ल
तकलीफें ही बन जाती हैं ताक़त कभी कभी
और दे जाती हैं मुश्किलें भी राहत कभी कभी ।
टूट जाती है हिम्मत, हिम्मतवालों के इश्क़ में
बुजदिली कर जाती है हिमाकत कभी कभी ।
सहती रहीं हैं ज़ुल्मों सितम हलाला के नाम पे
बोझ लगती है मुझे तो ये रिवायत कभी कभी ।
हुस्नोईश्क़ से परे भी कई और हैं मअसले यहाँ
बेहूदा लगती है तेरी ये नज़ाकत कभी कभी ।
ताकत ने अक्सर डाला है जान खतरे में मगर
बेबसी ने करी है उनकी हिफाज़त कभी-कभी ।
सियासत में सब्र बेहद ज़रूरी है नये लीडरों को
महंगी पड़तीं है बेबुनियाद बगावत कभी-कभी ।
ये जो आईना दिखाते हो अजय गज़लों में तुम
बन जाती है सच्ची शायरी आफत कभी-कभी
-अजय प्रसाद