आवारा
आवारा
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इस भरी दुनिया में
हर कोई आवारा है,
बस!सबके अपने
चोंचले हैं।
कोई सुलझा हुआ आवारा
तो कोई ऊलझा हुआ आवारा।
आवारों की इस भीड़ में
सबकी अपनी पहचान है,
बस समझना इतना सा है
कि
हमारी इसकी उसकी
आवारगी में फर्क कितना है।
वो फर्क हमारी
समझ में दिखता है,
क्योंकि यहां सबके साथ
आवारा भी बिकता है।
?सुधीरश्रीवास्तव