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18 Jun 2021 · 2 min read

आलेख- ग़ज़ल लिखना सीखे -(भाग-2)- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’

आलेख- ग़ज़ल लिखना सीखे -(भाग-2)

-राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
आज हम ग़ज़ल में मक्ता, मतला, रदीफ और काफिया के बारे में संक्षिप्त में जानेंगे।

मतला- ग़ज़ल के पहले शेर को मतला कहते है।

मक्ता – ग़ज़ल के सबसे आख़िरी शेर को मक्ता कहते है। अधिकांश शायर मक्ते में अपना उपनाम तखल्लुस लिखते हैं। इसी शेर को जब कोई कव्वाल एवं गायक पढ़ते हो तो सुनने वाले को पता चल जाता है कि ये ग़ज़ल किसने लिखी है।

रदीफ- ग़ज़ल की पहली पंक्ति एवं दूसरी, चौथी, छठवीं, आठवीं, दसवीं, बारहवीं आदि में अंतिम में जो शब्द बार बार उपयोग किया जाता है उसे रदीफ कहते है। जैसे- मेरी ग़ज़ल का ये शेर देखे-
ग़ज़ल-
तुम मुझे याद बहुत आते हो।
आंख से दिल में समा जाते हो।।

हो तुम्हीं मेरी मुहब्बत का फ़ूल।
ज़िन्दगी को तुम्हीं महकाते हो।।

तुम तसब्बुर में मिरे आ आकर।
किसलिए तुम मुझे तड़पाते हो।।

प्यार करते हो मुझे तुम भी मगर।
मुंह से कुछ कहने में शरमाते हो।।

‘राना’ हम तुम को भुलाएं कैसे।
दिल के मंदिर में बसे जाते हो।।
***
गजलगो- राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, टीकमगढ़ (मप्र)

1- मतला– उपरोक्त ग़ज़ल में निम्नलिखित शेर मतला है-
तुम मुझे याद बहुत आते हो।
आंख से दिल में समा जाते हो।।

2- मक्ता- उपरोक्त ग़ज़ल में ‘निम्नलिखित शेर मक्ता है-
‘राना’ हम तुम को भुलाएं कैसे।
दिल के मंदिर में बसे जाते हो।।

3- तकल्लुस- उपरोक्त ग़ज़ल में “राना” शायर का तकल्लुस है। देखे आखिरी शेर-
‘राना’ हम तुम को भुलाएं कैसे।
दिल के मंदिर में बसे जाते हो।।

4– क़ाफिया- उपरोक्त ग़ज़ल में आते,जाते, महकाते, तड़पाते, शरमाते जाते काफिया हैं इसमें ते का काफिया लिया गया है।

5– रदीफ- उपरोक्त ग़ज़ल में “हो” रदीफ है।
***

– राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’
संपादक’आकांक्षा’पत्रिका
अध्यक्ष मप्र लेखक संघ टीकमगढ़
शिवनगर कालोनी, टीकमगढ़ (मप्र)-472001
मोबाइल-9893520965

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 631 Views
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