Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Sep 2017 · 4 min read

आरक्षण या विषवेल

आरक्षण
……………
आज का दौर आरक्षण का दौर है जहाँ हमारी सोच भी आरक्षित हो गई है, हम योज्ञता के समब्द्ध कम अपितु आरक्षण के मातहत कुछ ज्यादा ही सोचने लगे है । पठन – पाठन में आरक्षण, छात्रवृत्ति में आरक्षण, रहन – सहन में आरक्षण, चुनाव में आरक्षण, नौकरी में आरक्षण अब तो पदोन्नति में भी आरक्षण।
इस आरक्षण का हमारे जीवनशैली पर ऐसा दुश्प्रभाव हुआ है कि अब हमारे सपने भी आरक्ष के दुश्प्रभाव से अछूते नहीं रहे।
जिन्हें आरक्षण प्राप्त है उनके सपने मिठे हो गये है वो उन्हें गुदगुदाने लगे हैं, उनके सपनों में दिपीका पादुकोण, कैटरीना, करीना, आलिया भट्ट आती है वहीं हमारे सपनों में कुमारी मायावती जी आतीं हैं और वहां भी इस बात के लिए डराती हैं कि आरक्षण का प्रतिशत सौ होना चाहिए। आज हमारे सपने भी आरक्षणग्रस्त हो गये हैं।
वो सुख की निन्द इसलिए सो पाते हैं कि जो अल्पकालिक ब्यवस्था कुछ अति पिछड़े वर्ग के लोगों को मुख्य धारा से जोड़ने के लिए कुछ ही समयाविधि के लिए लागू की गई थी लेकिन राजनीति के पुरोधाओं ने इसे स्वार्थ सिद्धि का साधन बना लिया और इस योज्ञताहंता कुब्यवस्था को सीचने लगे कल का सींचीत विषवेल आज बेहया के पेड़ की तरह हर तरफ फैल गया और फल फूल रहा है।
इस विषवेल को खोद कर समाजिकधारा से अलग कर पाना बड़ा ही कठिन होगया है, इसके प्रभाव से शिक्षा दम तोड़ रही है, समाज विकृति का शिकार हो रहा है , योज्ञता मीट रही है, मेधावी पलायन को मजबूर हैं। समाज को दो अलग-अलग धाराओं में बाटने का कुकर्म इस कुब्यवस्था ने किया है।
जिस उद्देश्य से इस ब्यवस्था को सतही पटल पे लाया गया था वह आज भी जस की तस अपूर्ण अवस्था में ही है नाम किसी और का मलाई कोई और खा रहा , इस कुब्यवस्था ने असमानता इस कदर बढा दी कि आज उसे पाट पाना लोहे के चने चबाने जैसा ही हैं जो गरीब थे वो और गरीब होते चले गये अपने बच्चों को प्राथमिक शिक्षा दिलाना भी उनके बूते की बात नहीं रही , उनके बच्चे होस सम्भालते ही काम पे लगजाते है कारण गरीब और महंगाई की मार इस कदर बढी है कि जितने भी जन में हों सब अगर न कमाये तो दो जून की रोटी भी नसीब ना हो इस तबके के जो अमीर थे वो और अमीर होते चलेगये इस ब्यवस्था का जो भी लाभ था उसपर इन्होंने कुण्डली मार रखी है।
अतः स्थिति जस की तस रही और सायद अगले कई एक वर्षों तक ऐसी ही रहेगी। किन्तु एक बदलाव अवश्य आया है आरक्षण का लाभ जो पाते है ओ उकसाते है और जो इस लाभ के काबिल भी नहीं बन पाये ओ लड़ने मरने को तैयार है फिर उन्हें अच्छी निन्द और अच्छे सपने भला क्यों न आयें।
आरक्षण आज मांसिक रोग का ब्यापक रूप धारण कर चूका है जिसे देखो वहीं भिखारी बना आरक्षण मागने पहुंच जाता है यह सबको चाहिए किसी भी किम्मत पर किसी भी हालात में अब इसके लिए कोई भी नुकसान आपका, हमारा, हम सब का हमारे सपूर्ण राष्ट्र का हो इससे इन्हें कोई वास्ता नहीं।
आज सबको अपनी क्षमता से ज्यादा आरक्षण पे भरोसा है,
योज्ञता जरूरी हो न हो किन्तु आरक्षण जरूरी है
बच्चे का एडमिशन बिद्यालय में बाद में होता है जाती प्रमाणपत्र की कवायद पहले शुरु हो जाती है।
इस कुब्यवस्था का ग्रास वह तबका बना हुआ है जो सदियों से पुस्त दर पुस्त ज्ञानार्जन को ही सर्वोपरि मानता आया है
आजादी के बाद से ही उसके सपने लहुलुहान होते आये हैं और आज भी हो रहे हैं। जिसे आरक्षित वर्ग मनुवादी या सवर्ण के नाम से संबोधित करता है।
कुछ ऐसे संवेदनशील क्षेत्र है जिन्हें इस दुरब्यवस्था से मुक्त रखा जाना चाहिए था परंतु ऐसा हुआ नहीं वो क्षेत्र आज सर्वाधिक क्षत विक्षत है जैसे- शिक्षा जनित क्षेत्र, चिकित्सा का क्षेत्र।
सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्र शिक्षा का ही रहा है
जो आज मृत्यु शौया पर पड़ा आखिरी सांसें गीन रहा है।
यह विकृति कल कही समाजिक विखंडन का रूप न ले ले। कही हम गृहयुद्ध की अग्रसर तो नहीं हो रहे।
जब हम आजाद हुये लगभग उसी समय जपान प्रमाणु बम की चपेट में आने के कारण बर्बादी के कगार पर खड़ा था किन्तु इतने ही वर्षों में आज वह हमें ब्याज दे रहा है और हम ले रहे है जिसका इस्तेमाल बुलेट ट्रेन परियोजना पर होना है, यह वही परियोजना है जो हमारे लिए एक स्वर्णिम स्वप्न साकार होने जैसा है लेकिन जापान पिछले कई वर्षों से इस सुविधा का इस्तेमाल कर रहा है।
यहाँ यक्ष प्रश्न यह है कि एक ही साथ उन्नति के आश में आगे बढे दो राष्ट्रों के मध्य इस कदर फासला क्यों कर हुआ ?
उत्तर है ; उनके हमारे सोच की , वो राष्ट्र को प्रगतिशील बनाने में विश्वास रखते व उसपे काम करने में ब्यस्त रहते है वहीं हम वोट बैंक कैसे बढे हिन्दू मुश्लिम करने से, दलित सवर्ण करने से मंदिर मस्जिद से या फिर आरक्षण की समयावधि और बढाने से हमारी सोच कभी इससे इतर गई ही नहीं, परिणाम आपके, हमारे, हम सबके समक्ष है।
अंग्रेज तो चलेगये किन्तु फुट डालो राज करो वाली अपनी वो नीति यही छोड़ गये और उसी का ये दुष्परिणाम है जो आज हमें मिला हैं आरक्षण , मंदिर मस्जिद ऐसे कई कुचक्र। और हम उन्हें बड़े ही इमानदारी पूर्वक तन्मयता के साथ झेल भी रहे हैं।…।।।।।।।।।
पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Language: Hindi
Tag: लेख
1 Like · 292 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from संजीव शुक्ल 'सचिन'
View all
You may also like:
It is not necessary to be beautiful for beauty,
It is not necessary to be beautiful for beauty,
Sakshi Tripathi
💐प्रेम कौतुक-170💐
💐प्रेम कौतुक-170💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
जिसकी तस्दीक चाँद करता है
जिसकी तस्दीक चाँद करता है
Shweta Soni
अब किसपे श्रृंगार करूँ
अब किसपे श्रृंगार करूँ
डॉ०छोटेलाल सिंह 'मनमीत'
*मस्ती बसती है वहॉं, मन बालक का रूप (कुंडलिया)*
*मस्ती बसती है वहॉं, मन बालक का रूप (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
They say,
They say, "Being in a relationship distracts you from your c
पूर्वार्थ
सत्ता परिवर्तन
सत्ता परिवर्तन
Shekhar Chandra Mitra
जन्म से मरन तक का सफर
जन्म से मरन तक का सफर
Vandna Thakur
बहुत कुछ था कहने को भीतर मेरे
बहुत कुछ था कहने को भीतर मेरे
श्याम सिंह बिष्ट
एक बिहारी सब पर भारी!!!
एक बिहारी सब पर भारी!!!
Dr MusafiR BaithA
पिता पर एक गजल लिखने का प्रयास
पिता पर एक गजल लिखने का प्रयास
Ram Krishan Rastogi
कुछ लोग हेलमेट उतारे बिना
कुछ लोग हेलमेट उतारे बिना
*Author प्रणय प्रभात*
यदि सफलता चाहते हो तो सफल लोगों के दिखाए और बताए रास्ते पर च
यदि सफलता चाहते हो तो सफल लोगों के दिखाए और बताए रास्ते पर च
dks.lhp
2875.*पूर्णिका*
2875.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
भाव
भाव
Sanjay ' शून्य'
उतर गया प्रज्ञान चांद पर, भारत का मान बढ़ाया
उतर गया प्रज्ञान चांद पर, भारत का मान बढ़ाया
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
"इमली"
Dr. Kishan tandon kranti
पापा के परी
पापा के परी
जय लगन कुमार हैप्पी
सुन लो मंगल कामनायें
सुन लो मंगल कामनायें
Buddha Prakash
जिस बस्ती मेंआग लगी है
जिस बस्ती मेंआग लगी है
Mahendra Narayan
Yaade tumhari satane lagi h
Yaade tumhari satane lagi h
Kumar lalit
*कमबख़्त इश्क़*
*कमबख़्त इश्क़*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
सच तो रंग होते हैं।
सच तो रंग होते हैं।
Neeraj Agarwal
संध्या वंदन कीजिए,
संध्या वंदन कीजिए,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
ये दूरियां सिर्फ मैंने कहाँ बनायी थी //
ये दूरियां सिर्फ मैंने कहाँ बनायी थी //
गुप्तरत्न
जाग गया है हिन्दुस्तान
जाग गया है हिन्दुस्तान
Bodhisatva kastooriya
कारकुन
कारकुन
Satish Srijan
मोहब्बत तो आज भी
मोहब्बत तो आज भी
हिमांशु Kulshrestha
*** पल्लवी : मेरे सपने....!!! ***
*** पल्लवी : मेरे सपने....!!! ***
VEDANTA PATEL
तेरी यादों के आईने को
तेरी यादों के आईने को
Atul "Krishn"
Loading...