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21 Mar 2021 · 1 min read

आये जबहिं चुनाव

आये जबहि चुनाव ,दीखते नेता जी।
वादे करें नित रोज़ , रिझाते नेता जी।

बीते यूँ ही साल,किया न पूरा’ वादा।
वादे फिर इस साल,करें फिर नेता जी।

बदलें गिरगिट रंग,रंग न कोई’ छोड़ा,
तज दी हर इक लाज, लजायें नेता जी।

मछली की सी आँख, दीखता हर वोटर,
करें तीर संधान , साधते नेता जी।

खुद तो खाते पान,लगाते हैं चू ना,
चूने का वह पान ,खिलाते नेता जी।

करते धन को जमा,साल वह पाँचों में,
झोली भरकर नोट, बाँटते नेता जी।

खुद तो हैं बिन रंग,रंग न कोई’ चढ़ता,
जनता को गुल लाल, लगाते नेता जी।

सुनते गिले हज़ार,नहीं सुनते एकहु,
सबको मिल उपदेश,बाँटते नेता जी।

गाँव-शहर तस्वीर, बदल देंगे सारी,
ढोल मुनादी संग,कराते नेता जी।

कैसी है यह चाल,अटल समझ न पाया,
गोल गोल हर बार,घुमाते नेता जी।

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